
माटी में बीज सा ख़ुद को बोना, बरखा सा ख़ुद ही बरसना, फिर उगना ख़ुद ही जंगली फूल सा. कांटना-छांटना-तराशना-गढ़ना ख़ुद को आसान नहीं होता. सिद्धि प्राप्त करनी होती है ख़ुद तक पहुँचने के लिए. धार के विपरीत बहना पड़ता है थकान से भरी देह उठाये तय करना पड़ता है रास्ता बिलकुल अकेले. दूसरों पर जय पाने से पहले ख़ुद को जय करना (जीतना) होता है...तब बनता है कोई "स्वयंसिद्ध" !!
शनिवार, 19 दिसंबर 2009
कमाल है !

मंगलवार, 8 दिसंबर 2009
सरोद घर

बुधवार, 25 नवंबर 2009
परिंदों का दर्द
प्रतिमा
सोमवार, 16 नवंबर 2009
सचिन तुस्सी सचमुच ग्रेट हो !

बुधवार, 11 नवंबर 2009
मुझे क्षमा करें

सोमवार, 9 नवंबर 2009
सोमवार, 26 अक्टूबर 2009
बुद्ध की शरण में...!

गुरुवार, 22 अक्टूबर 2009
एक खूबसूरत पल !


''मैं '' प्रतिमा ...
(On Colombo Sea Beach-Srilanka)
शनिवार, 17 अक्टूबर 2009
सब जग हो उजियारा ...!
मंगलवार, 13 अक्टूबर 2009
बताओ मुझे ...!
गुन कर शब्द चुनती हूँ ...,
प्रतिमा ... !
सोमवार, 12 अक्टूबर 2009

शनिवार, 10 अक्टूबर 2009
ज़िद...!

सोमवार, 5 अक्टूबर 2009
महिलाओं और विकलांगों के लिए ...

गुरुवार, 24 सितंबर 2009
एक सपना ...!
प्रतिमा !!!!!!!
सोमवार, 21 सितंबर 2009
ईद मुबारक ...

प्रतिमा !!!!!!!!
रविवार, 20 सितंबर 2009
ऐसा हो जाने दो ...
प्रतिमा !!!!!!!!
शुक्रवार, 18 सितंबर 2009
एक धोखा ...!
शुक्रवार, 11 सितंबर 2009
मकसद
शुक्रवार, 4 सितंबर 2009
हम बेटियां ...!

मंगलवार, 1 सितंबर 2009
एक सुंदर अनुभव ...!





शनिवार, 29 अगस्त 2009
(18) आँखें ... !

रविवार, 23 अगस्त 2009
(17) उलझन...!
''मैं '' प्रतिमा ........ !
बुधवार, 19 अगस्त 2009
(16) उनके शब्दों में ...!
गीले बादल , पीले रजकण ,
सूखे पत्ते , रूखे तृन घन ,
ले कर चलता करता ' हरहर '- इसका गान समझ पायोगे ?
तुम तूफ़ान समझ पायोगे ?
गंध भरा यह मंद पवन था ,
लहराता इससे मधुबन था ,
सहसा इसका टूट गया जो स्वप्न महान , समझ पायोगे ?
तुम तूफ़ान समझ पायोगे ?
तोड़ - मरोड़ ,विटप - लतिकाएँ ,
नोच -खसोट , कुसुम - कलिकाएँ ,
जाता है अज्ञात दिशा को ! हटो विहंगम , उड़ जाओगे !
तुम तूफ़ान समझ पाओगे ... ?
''मैं'' प्रतिमा...
शनिवार, 15 अगस्त 2009
(15) जश्ने आज़ादी सबको मुबारक ... !

आज़ादी की खूबसूरत सौगात ले कर आयी आज की तारीख हम सबके लिए एक ख़ास अहमियत रखती है । आज १५ अगस्त है । सुबह से ही गली - चौराहों , स्कूलों - कॉलेजों , ऑफिसों और रेडियो पर देश - भक्ति गीत बज रहे हैं । हर हाथ में तिरंगा शान से लहरा रहा है । जिसे देखो वही देश भक्ति के रंग में रंग कर इतरता फिर रहा है ।सचमुच बहुत ही अच्छा लग रहा है , मगर कल ... । कल शायद तारीख पुरानी पड़ते ही ये सारी बातें भी पुरानी हो जायेगीं । देश भक्ति के गीत बजने बंद हो जायेगें , दैनिक व्यस्तता में देश - प्रेम की बातें बिसरा दी जायेगीं और आज हाथ - हाथ में शान से लहरा रहा तिरंगा कल कचरे के डिब्बे में पहुँच जायेगा । माफ़ कीजियेगा अगर मेरी बातें बुरी लगें लेकिन क्या करूं सच यही है । आज़ादी के जश्न के मायने अब हमारे लिए एक छुट्टी से ज़्यादा नही रहे । कितना अच्छा हो , अगर हम आज के दिन घूमने - फिरने , पिक्चर देखने और मौज - मस्ती करने के साथ ही साथ एक बार ही सही अपने देश के बारे में सोच सकें । अपने बच्चों को आज़ादी के सही मायने समझा सकें और वाकई पूरी ईमानदारी से कह सकें - हाँ ... हमें भारतीय होने पर गर्व है । अगर आप ऐसा कर पाए हैं तो आपको स्वतंत्रता दिवस की असीम शुभ कामनाएँ ... !
मैं- प्रतिमा !!!
गुरुवार, 13 अगस्त 2009
(14) एक दोस्त के लिए ... !
बुधवार, 12 अगस्त 2009
(13) संवेदना ... !

मंगलवार, 11 अगस्त 2009
(12) एक अनुत्तरित प्रश्न ... !

सोमवार, 10 अगस्त 2009
(11) एक उदास शाम ... !
शनिवार, 8 अगस्त 2009
(10) एक पुराने पन्ने से ...!

शुक्रवार, 7 अगस्त 2009
(9)एक शर्मनाक इतिहास ... !

मानव सभ्यता, बीत चुकी जिन घटनाओं से आज भी शर्मसार है , ये चित्र उन्ही में से एक का है । इतिहास का वो काला पृष्ठ , जिस पर नज़र पड़ते ही आज भी सबकी रूह फ़ना हो जाती है । क्या लिखा है इस काले पृष्ठ पर ... ? अंहकार, जिद और ग़ुस्से में पगलाए दुनिया के सबसे दम्भी , मगरूर और ताकतवर देश की काली करतूत का कच्चा चिठ्ठा... । दूसरा विश्व युद्ध समाप्ति की ओर था , लेकिन इससे पहले मानव - इतिहास की सबसे भयावह त्रासदी घटने की प्रतीक्षा कर रही थी । छः महीने तक जापान के ६७ शहरों पर बमबारी करने के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी एस ० ट्रूमैन ने छः और नौ अगस्त , १९४५ को हिरोशिमा और नागासाकी शहरों पर परमाणु बम गिराने का आदेश दिया । आका के हुक्म की तामील हुयी । परमाणु बम गिराए गए और लगभग एक लाख चालीस हज़ार लोग मौत की आगोश में समा गए । जो बचे , उनके हिस्से आई ,मौत से भी बदतर ज़िन्दगी । एक अध्ययन के अनुसार , इस त्रासदी में बचे लोगों में से ज्यादातर विकिरण से फैले कैंसर और ल्यूकेमिया के कारण मारे गए और ये सिलसिला आज भी जारी है । अपनी सभ्यता , विवेक और विकास का ढोल पीटते ,आत्ममुग्धता में इतराते और अपने गौरवशाली (?) अतीत का प्रशस्तिगान करते मानव समाज के लिए इस भयावह हादसे का कलंक मिटा पाना असंभव है । ये एक ऐसी शर्मनाक याद है जिससे मानव सभ्यता कभी निजात नही पा सकती, और इससे भी ज़्यादा शर्म इस बात की , कि हमने इस खौफनाक तबाही से अब भी सबक नही लिया है । ख़तरनाक हथियारों को जमा कर लेने की होड़ में सबसे आगे रहना ही आज विकसित और शक्तिशाली का पैमाना है, और छोटा हो या बड़ा ,कोई भी इस पैमाना पर कम साबित नही होना चाहता । क्या डा० बशीर बद्र की ये पंक्तियां ताकत की हवस में पागल इंसानों को कोई सबक दे सकती हैं-
'' उम्र बीत जाती है एक घर बनने में , तुम तरस नही खाते बस्तियां जलने में ... ! ''
गुरुवार, 6 अगस्त 2009
(8)मेरा आकाश ... !
मंगलवार, 4 अगस्त 2009
(7) ये राखी बंधन है ऐसा .... !
प्रतिमा ...
रविवार, 2 अगस्त 2009
(6) दोस्ती ख़ुदा है ..........!
अगर ये सच है तो मैंने इस सच को अपनी रूह की गहराईयों से जिया है । मेरी ज़िन्दगी में दोस्ती उस ताकत की तरह रही है , जिसने मुझे हर मुश्किल में संभाला है , वो प्रेरणा रही है , जिसने मुझे हमेशा सही राह दिखाई है , वो रौशनी रही है , जिसने मुझे हर अंधेरे से उबारा है । मैं शायद भावुक हो रही हूं लेकिन सच यही है, तो है । मेरे लिए दोस्ती कभी भी कोई ऐसा औपचारिक विषय नही रही जिस पर मैं कोई लेख लिखूं या विचार व्यक्त करूं । मैं इस लफ्ज़ को जीती आई हूं। ख़ुदा की ये नेमत मुझे सौगात में मिली है । ज़िन्दगी ऐसे भी कई मौके आए , जब ख़ुद से भी भरोसा उठ गया ,हर रास्ते बंद से महसूस हुए , लेकिन ऐसे वक्त में भी मेरी आखों में उम्मीद के दिए जलते रहे जिनकी लौ में मेरे दोस्तों का मुझ पर यकीन जगमगा रहा था। सोचती हूं आज फ्रेंडशिप डे के मौके पर अगर कुछ देना भी चाहूं तो क्या दूं उन्हें , जिन्होंने मुझे ज़िन्दगी पर और मुझ पर मेरा विश्वास दिया । क्या बाज़ार में सजे बेशकीमती कार्ड्स , गिफ्ट्स और सजावटी - बनावटी सामान काफ़ी हो पायेंगे , मेरा धन्यवाद उन तक पहुंचने में ? शायद नही ... !क्या दे सकती हूं मैं अपने दोस्तों को सिर्फ़ अपनी भावना और शुक्रिया के सिवा ... ।
शुक्रिया कि उन्होंने मुझ पर मुझसे बढ कर यकीन किया , मुझे मेरे ही रूप में स्वीकारा, मेरी हँसी ही नही मेरे आंसूयों का भी मोल जाना , मेरे साथ तब भी रहे , जब मेरा साया भी मेरा साथ छोड़ रहा था । मैंने अपनी कामयाबी के मोती और नाकामी की किरचें , दोनों ही अपने दोस्तों से बाटीं हैं और आज बस इतना ही कहना चाहती हूं कि मेरे लिए दोस्ती महज़ एक लफ्ज़ नही , ज़िन्दगी है... ,ख़ुदा है... । मैंने इसे जिया है और अगर आप भी हैं मेरी तरह खुशनसीब तो आपको भी फ्रेंडशिप डे की असीम शुभकामनाएँ ... !अपने दोस्तों को हमेशा अपने दिल के करीब रखियें क्योंकि यही वो मोती हैं जो ज़िन्दगी को आब देते हैं और जब कोई मुश्किल आन पड़े तो उस से लड़ कर जीतने की ताब देते हैं ।
'' मैं '' प्रतिमा ... !
शनिवार, 1 अगस्त 2009
(5)एक आदत सी बन गई है तू .....
जब से आकाश का ये नन्हा सा कोना अपने लिए खोज निकला है, एक नया ही जोश महसूस कर रही हूँ । पिछले तीन दिन काफी व्यस्त बीते । ३१ जुलाई को विश्व प्रसिद्ध साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद जी की जयंती थी । इस अवसर पर हमारी सेतु सांस्कृतिक संस्था ने इस बार तीन दिवसीय आयोजन किया । पहले दिन ' प्रेमचंद साहित्य में नारी विमर्श ' विषय पर गोष्ठी , दूसरे दिन ' प्रेमचंद नाट्य पद यात्रा ' और तीसरे दिन ' प्रेमचंद जी के जन्म स्थान लमही गाँव में उनकी लिखी कहानिओं का नाट्य मंचन । सब कुछ बहुत ही रचनात्मक और संतुष्टिपूर्ण रहा । बनारस जैसे सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व के शहर में हमने अपना प्रवाह बनाये रखा है ये हमारे लिए तोष का विषय है मगर ये एहसास भी है कि अभी बहुत कुछ करना है । मैंने विस्तृत आकाश का ये एक नन्हा पृष्ठ अपने लिए इसी लिए चुना है ताकि मै उन जाने - अजाने चेहरों और नामों तक पहुँच सकूं जिनकी सोच, विचार और कार्य विधि विशेष है । मैं भी उनसे जुड़ कर ख़ुद में नयापन और सृजनशीलता का विकास कर सकूं । आज अपने ब्लॉग पर तीन विशिष्ट जन के विचार अपने लिए पाकर मैं प्रफुल्लित हो उठी । लगा , अपना प्रयास सफल हो रहा है । अगर आप भी मेरे आकाश में मुझसे मिलें तो अपनी बेशकीमती राय ज़रूर दीजियेगा । मेरी लेखनी आपसे जुड़ कर और सशक्त होगी । मैं कह सकूंगी '' विस्तृत नभ का एक कोना आखिर मेरा हो ही गया '' ।
आकाश में अपने हिस्से के रंग तलाशती मैं ' प्रतिमा ' ...................... !
बुधवार, 29 जुलाई 2009
(4) वो दिन हवा हुए ...
मंगलवार, 28 जुलाई 2009
(3) ये कैसा सच ... !
pratima sinha
सोमवार, 27 जुलाई 2009
My second day on blog...
kabhi-kabhi mehsoos hota hai jaise zindagi bhagati hi chali ja rahi hai.Band Mutthi se phisalti ret ki tarah... pichhe mud kar dekho to lagta hai jaise kal ki hi baat ho. Jo kuchha beet chuka hai, wo sab kuchha yahi kahi thahar gaya sa lagta hai. lekin..., akhir sach to yahi hai, ki, waqt har pal guzar raha hai aur isi sach ke sath har pal ko jeena hi samjhdaari hai. kal nag-panchmi thi, aj Sawan maah ka third monday hai. shukra hai bhagwan ka, ki mere shahar mei abhi bhi maati se jude in teej-tyohar ki khushboo baki hai, warna bade kahe jane wale (?) shaharo mei to din-raat ke siwa bhahut kuccha pata hi nahi chalta.Jo bhi ho sawan ke pure maheene mei baba vishwanath ki nagari KASHI ki chhata hi nirali hoti hai aur iis baat ko wahi samajh sakta hai, jisne sawaan mei kashi ko karib se dekha ho.
see you all again !
शनिवार, 25 जुलाई 2009
My First Day of writing AKASH...
kitna sundar..., manmohak..., yaha se waha tak sirf aur sirf mera... !
I still can't believe that I have created my own blog finally and now I'm able to express my feelings & emotions with the whole world. I must be thankful to internet.
Kitna Kuch hai mere paas, kahne ko, batane ko,
Dhire-Dhire batoungi & I hope aap sabko bhi mera akash mei mere saath parwaz Bharna Achchha Lagega.Saat Rang batungi aap sabke saath...
mera aaj ka din sachmuch bahut achchha raha... .
Good Day...
meet you again...
अवसाद के भय से जूझता मध्यमवर्ग !
शायद आपको पता हो कि भारतीय समाज में पाया जाता है एक 'मध्यमवर्गीय तबका'। उच्च वर्ग की तरह कई पीढ़ियों के जीवनयापन की चिंताओं से मुक...
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जाने क्यों आज रोने को जी चाह रहा है , जाने क्यों भरी चली जा रहीं हैं पलकें, सुधियों की भीड़ से , जाने क्यों हर बात आज जैसे छू रही है मन ,...
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"WORLD BOOK DAY" आज दिल से एक बात से स्वीकार करना चाहती हूँ। मैं वैसी हूँ जैसा 'मुझे किताबों ने बना दिया है।' ...
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चुप भी रहूं तो आँखें बोलती हैं , न जाने कितने पोशीदा राज़ खोलती हैं , दिल का हाल चेहरे पर लाती हैं और दुनियां भर को बताती हैं , यूं तो मैं प...