२४ अगस्त को श्रीमती नादिरा ज़हीर बब्बर बनारस में थीं , अपने नाटक आप कहें-हम सुनें के साथ . मुझे एक मौका मिला उनसे मिलने और बात करने का. हमेशा की तरह एक मुलाकात और एक उपलब्धि रही मेरे हिस्से में. रक्षाबंधन का दिन .... , काफ़ी दिनों से काम में लगे रहने के बाद सारा दिन आराम करने का मूड...., उस पर सावन के कारे कजरारे बादलों की मनभावन आँख-मिचौली और टिप-टिप बरसती बूँदें....,कुल मिला कर घर से बाहर निकलना खुद पर बस एक जुल्म करने जैसा ही था. शाम तक जब बारिश तेज़ हो चली तो प्याज़ के पकौडे भी याद आने लगे,लेकिन नादिरा जी तक पहुँचने की जल्दी प्याज़ काटने और पकौडे तलने की मोहलत भला कब देने वाली थी तो बस बारिश में भीगते-भागते पहुँच ही गये हम उनसे मिलने और मिल कर सचमुच अच्छा लगा.
रंगमंच एक प्रतिष्ठित नाम , जिन्होंने अपना जीवन ही रंग कर्म को समर्पित कर दिया लेकिन मिलने पर पाया एक अति विनम्र कलाकार को ,जो मुझे बोलीं कि नहीं , मुझमें ऐसा भी कुछ खास नहीं , जिसकी इतनी तारीफ़ की जाय. उन्होंने ऐसा कहा लेकिन मैंने ये माना नहीं क्योंकि मैं जानती थी कि जिस शख्सियत के साथ मैं हूँ उसने अपने काम से सच्चा प्यार किया है, पूजा है और अपना सर्वश्रेष्ठ दिया है और ऐसे लोग हमेशा आने वाली पीढियों के लिये आदर्श होते हैं, प्रेरणा की भूमिका निभाते हैं, रास्ता दिखाते हैं और बेशक तारीफ़ के काबिल होते हैं.