
रच रही हूं अपने ही हाथों अपना आकाश ...
सुंदर , सलोना,
आकांक्षाओं के सतरंगी इन्द्र - धनुष को ,
अपनी असीम अनंतता में समेटे ,
मेरे स्वप्नों के लिए नित नए क्षितिज रचता ,
मेरा अपना आकाश ... !
माटी में बीज सा ख़ुद को बोना, बरखा सा ख़ुद ही बरसना, फिर उगना ख़ुद ही जंगली फूल सा. कांटना-छांटना-तराशना-गढ़ना ख़ुद को आसान नहीं होता. सिद्धि प्राप्त करनी होती है ख़ुद तक पहुँचने के लिए. धार के विपरीत बहना पड़ता है थकान से भरी देह उठाये तय करना पड़ता है रास्ता बिलकुल अकेले. दूसरों पर जय पाने से पहले ख़ुद को जय करना (जीतना) होता है...तब बनता है कोई "स्वयंसिद्ध" !!
शायद आपको पता हो कि भारतीय समाज में पाया जाता है एक 'मध्यमवर्गीय तबका'। उच्च वर्ग की तरह कई पीढ़ियों के जीवनयापन की चिंताओं से मुक...
4 टिप्पणियां:
ब्लोगिंग के दुनिया में स्वागत है, आपको अपना आकाश मुबारक हो..बेहतरीन...
In this beautiful sky, you will find all yourcolors of dream....
BEST OF LUCK
भावों की निर्मल अभिव्यक्ति......सचमुच बहुत ही विस्तृत और अनन्त भावनाओ को समेटे हुये है.......यह......आकाश. आभार.
ब्लॉगजगत में हार्दिक अभिनन्दन है आपका.......आपके इस आकाश में सदैव उम्मीद का सूरज जगमगाता रहे......यही शुभकामनायें हैं....
साभार
हमसफ़र यादों का.......
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