सोमवार, 2 अप्रैल 2012

एक पुरानी बात......




जाने क्यों आज रोने को जी चाह रहा है ,
जाने क्यों भरी चली जा रहीं हैं पलकें,सुधियों की भीड़ से ,
जाने क्यों हर बात आज जैसे छू रही है मन ,
क्या है जो....
घुमड़ रहा है भीतर,
क्या है जो....
छूट रहा है बाहर ,
न जाने किसकी अनुपस्थिति ने पोंछ डाले हैं 
आसमान के सारे चटकीले रंग,
ये किसके न होने से 
सादी - वीरान सी हो गयी है हर दिशा,
ये किसका चेहरा बन कर धुंआ
छाया चला जा रहा है आँखों के आगे......? 
ये कौन है 
जिसका न होना............
 बाकी हर किसी के होने पर भारी पड़ गया है...? 


शुक्रवार, 9 मार्च 2012

उम्मीद की धूप ... !


कुछ दिनों से सोच रही हूँ ......
फिर कोई नज़्म लिखूं...

और अल्फाज़ की डोर में पिरो कर
 तुम्हारे तसव्वुर  को 
रख दूँ सादे पन्ने के दामन में
कुछ दिनों से सोच रही हूँ ......
उदास रातें कात कर धागे बनाऊँ 
और फिर उन  धागों से
बुन कर  कुछ ख्व़ाब,
सजा दूँ
 तुम्हारे ख़्याल के सुरमई रंगों से...

कुछ दिनों से सोच रही हूँ
कि पुराने स्वेटर सी कुछ यादें ,
मन की तहों से निकालूँ और 
एक बार फिर से उन्हें दिखा दूँ,
तुमसे  मिल पाने की
उम्मीद की धूप ... !!!

शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2012

एक चित्र कहानी....मेरी अपनी.....!!

मुद्दतों बाद मिली थी उससे...
वो भी इस शिद्दत को महसूस कर रहा था शायद....दौड़ पड़ा मेरी ओर  दीवानों  की तरह .....
लम्हा भर को मैं झिझकी....ठिठकी एक पल को....  
लेकिन ये झिझक दीवार बन पाती उसके-मेरे बीच.... इससे पहले ही उसने पकड़ कर मेरा दामन मुझे खींच लिया अपनी ओर....
फिर... खुद में समेट ली....पहले मेरी सारी झिझक....  
फिर भर लिया ...सारा का सारा मुझे .....  
अपने आगोश में ......

फिर देखते ही देखते ....
मैं हो कर रह गई उसी की ....हमेशा की तरह ....  
और अब ...जब मैं वापस लौट आई हूँ उसके पास से....तो भी रह गया है मेरा वजूद....मेरा नाम...वहीँ .....उसके पास.....
कभी न मिटने के लिए ....
और...शायद रह गया है हमारे ''साथ'' .होने का एहसास भी....कभी ख़त्म न होने के लिए......

अवसाद के भय से जूझता मध्यमवर्ग !

शायद आपको पता हो कि भारतीय समाज में पाया जाता है एक 'मध्यमवर्गीय तबका'। उच्च वर्ग की तरह  कई पीढ़ियों के जीवनयापन की चिंताओं से मुक...