बुधवार, 19 अगस्त 2009

(16) उनके शब्दों में ...!

बहुत दिनों बाद ख़ुद से मुखातिब हुई हूं। हाँ... लिखना मेरे लिए अपने आपसे मिलने जैसा ही तो है । कुछ न लिखूं तो लगता है जैसे ख़ुद से मुलाकात नही हुई । इतने दिन ख़ुद से दूर कहां रही , क्या किया ...इन बातों की चर्चा शायद बेमतलब ही होगी । आज बैठी हूं तो कुछ दिल की कहना चाहती हूं ...!लेकिन कभी -कभी यूं भी तो होता है न कि दिल तो बहुत कुछ कहना चाहता हो मगर जेहन से अल्फाज़ ही गुम हो जायें । कुछ ऐसी ही कैफियत से गुज़र रही हूं और लगता है , आज अपने जज़्बात को जुबां देने के लिए मुझे किसी और के अल्फाज़ का सहारा लेना होगा । कोई ऐसा जो इस वक्त वाकई मुझे बयां कर सकता है ।श्रद्धेय बच्चन जी की ये कविता इस वक्त मुझे छूती हुई सी महसूस हो रही है .... (निशा - निमंत्रण से ...)

गीले बादल , पीले रजकण ,

सूखे पत्ते , रूखे तृन घन ,

ले कर चलता करता ' हरहर '- इसका गान समझ पायोगे ?

तुम तूफ़ान समझ पायोगे ?

गंध भरा यह मंद पवन था ,

लहराता इससे मधुबन था ,

सहसा इसका टूट गया जो स्वप्न महान , समझ पायोगे ?

तुम तूफ़ान समझ पायोगे ?

तोड़ - मरोड़ ,विटप - लतिकाएँ ,

नोच -खसोट , कुसुम - कलिकाएँ ,

जाता है अज्ञात दिशा को ! हटो विहंगम , उड़ जाओगे !

तुम तूफ़ान समझ पाओगे ... ?

''मैं'' प्रतिमा...

5 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

गीले बादल , पीले रजकण ,
सूखे पत्ते , रूखे तृन घन ,
ले कर चलता करता ' हरहर '-
इसका गान समझ पायोगे

सच है जो अपनी धुन में ........... अपनी मस्ती में चलता है उसको समझना आसान नहीं होता............ सुन्दर शब्द संयोजन है आपका ........

pratima sinha ने कहा…

Respected Digamber Sir,
आपके comments मुझे हमेशा ही उत्साह से भर देते है.अच्छा लगता है अपने जज़्बात मे किसी का शामिल होना...
आज की तारीख मे जाने क्यो मन कुछ उदास सा था तो वो कविता आप सबके साथ बाटी है जो उदास लम्हो मे मेरे दिल के करीब होती है. इसके रचनाकार आदरणीय डा हरिवन्श राय बच्चन जी है.यकीन है , ये कविता कही न कही आप सब को भी ज़रूर छुयेगी.

आभार..........

’मै’ प्रतिमा !!!

Chandan Kumar Jha ने कहा…

हरिवन्श राय बच्चन जी की इतनी अच्छी कविता सुनवाने के लिये आभार........यह कविता पहली बार पढ रहा हूँ......और मन के दर्द के बारे मे तो बस इतना ही कहुँगा.....

मन का दर्द रखो न मन में,
एक दिन विष बन जायेगा ।
मन की बात निकालो मन से,
कुछ कष्ट दूर हो जायेगा ।


ऐसा चलता रहता है....जिन्दगी में...इन सब चीजो की भी जरूरत पड़ती है.....बस इन्हें अपनी मजबूती बनाईये.....

आभार.

Unknown ने कहा…

Dear Pratimaji, udaas na hua kare.Udaasi bhali nahi hoti. Apki post man ko choo gayi.

Keep writing.......

Unknown ने कहा…

Bachchan Ji ki kavita bahut sundar hai.

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