मंगलवार, 30 अगस्त 2011

सेतु ने किया रोज़ा इफ़्तार !

रमज़ान का मुबारक महीना चल रहा है बल्कि अब तो बस गुज़रने ही वाला है.खुशियों की सौगात लिए ईद बस आ ही गयी है...इससे पहले की ईद के चाँद का दीदार हो सेतु ने की ओर से रोज़ा इफ़्तार का आयोजन गंगा-जमुनी तहज़ीब वाले शहर बनारस में किया गया.










सोमवार, 15 अगस्त 2011

मेरे लिए आज़ाद होने का मतलब...!


आज पंद्रह अगस्त है.हमारे देश का स्वतंत्रता दिवस . समूचा भारत अपने इस महान राष्ट्रीय पर्व  के उल्लास - उमंग में डूबा है हालांकि  आज़ादी का अर्थ हमेशा सबके लिए एक जैसा नहीं होता. न ही इसका जश्न और अभिव्यक्ति सबके लिए एक जैसी हो सकती है. घर से ऑफिस आते हुए सड़क पर सब्जी का ठेला सजाते सब्जी वाले और सवारी की प्रतीक्षा करते रिक्शे वाले या छुट्टी के फ़ुल मूड में गली क्रिकेट खेलते बच्चो को देख कर ये बात ज़ेहन में और गहरा सी गयी कि - 
'' हाँ,आज़ादी के  या फिर आज़ाद होने के  मायने हर किसी के लिए अलग-अलग ही होते हैं.''
मेरे लिए भी हैं ... आज़ाद होने के अलग मायने...! मेरी अपनी परिभाषा , जिससे दूसरे कितना इत्तेफ़ाक रखते हैं....रखते भी हैं या नहीं मेरे लिए ये प्रश्न ज़्यादा महत्व नहीं रखता.

मेरे लिए आज़ाद होने का अर्थ बाहरी से ज़्यादा भीतर की आज़ादी  से है. अपनी ख़ुद की सोच की, विचार की, भाव की और अभिव्यक्ति की आज़ादी से है. जानती हूँ ये कोई नयी क्रांतिकारी नहीं बल्कि हजारों बार दोहराई - कही - सुनी गयी बात है...लेकिन ये भी जानती हूँ कि किसी बात को बार-बार, लगातार कहने-सुनने या दोहराने से ज़्यादा महत्वपूर्ण है उसे जीना ...और मैंने इस विश्वास को जिया है. मेरे लिए मायने ये नहीं रखता कि दूसरे मुझे आज़ाद समझें या मुझे बताएं कि तुम आज़ाद हो . मेरे लिए इससे ज़्यादा ज़रूरी ये है कि मैं जानूं कि मैं आज़ाद हूँ और इसे महसूस भी कर सकूं.

मेरे लिए स्वतंत्रता का अर्थ स्वछंदता नहीं बल्कि अपनी परिधि स्वयं निर्धारित करने और अपना आकाश खुद रचने की प्रक्रिया का दूसरा नाम है.
मुझे लगता है मेरी आज़ादी मेरे व्यक्तित्व का अभिन्न और सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है. मैं स्वतंत्र हूँ ... ये अनुभूति हर पल मेरे सारे अस्तित्व , चेतना और संवेग शक्ति को चलायमान रखती है . यही वो अनुभूति है जिसे मैं किसी भी क़ीमत पर नहीं खो सकती और इस स्वतंत्रता का अर्थ मेरे लिए  बहुत -बहुत व्यापक है  जिसकी परिधि में मन ,परिस्थिति और उससे भी ज़्यादा स्वयं निर्णय कर पाने की क्षमता शामिल है.एक नियमित दिनचर्या में एक निर्धारित सामाजिक जीवन  जीते हुए निश्चित रूप से जीवन का एक हिस्सा, एक समय और कुछ निर्णय दूसरों के अधीन होते हैं लेकिन मैं उस अधीनता को अपने व्यक्तित्व के साथ जोड़ कर नहीं देखती . वो अधीनता एक यांत्रिक अवस्था मात्र है जिसका मेरी चेतना से कोई सम्बन्ध नहीं. एक व्यक्ति होने के नाते मैं अपने-आप को पूर्ण स्वतंत्र रखना,देखना और जानना चाहती हूँ और ईश्वर की कृपा से ऐसा कर भी पाती हूँ. 





सोमवार, 2 मई 2011

एक सुखद स्मृति...!

समय बीत जाता है लेकिन ये स्मृतियाँ ही होती हैं जो बीत चुके समय को हमारे बीच बनाये रखती हैं .बाईस से छब्बीस अप्रैल भी बीत गया . हर वर्ष अप्रैल शुरू होते इन पांच रातों के जागरण को लेकर मन में चिंता घर कर जाती है.एक अबोला सा तनाव ...कैसे होगा जागरण...कैसे निपटाए जायेंगे रोज़मर्रा के पहले से  तयशुदा काम.... रात भर जागने के बाद कैसे होगा अगले दिन का सुचारू संचालन, वो भी लगातार पांच दिन ...! लेकिन हर बार अपनी इन सारी (कु) शंकाओं पर हंस देती हूँ जब सारा वक्त जल के सहज प्रवाह सा व्यतीत हो जाता है...सुगमता-सकुशलता के साथ...!सचमुच जाने कहाँ चली जाती है सारी थकान, नींद की अनुभूति इस कार्यक्रम में !
कहीं और पांच तो क्या एक रात भी जागना हो तो हालत बुरी हो जाती है लेकिन यहाँ पांच रातें भी ऐसे गुज़रती हैं मानों कुछ भी अनियमित न हुआ हो... इसे ही हम संकटमोचन का चमत्कार और प्रताप मानते हैं.
पिछले आठ सालों से इस भव्य आयोजन का हिस्सा हूँ . मगर इस दफ़ा मेरे DIGI CAM ने मेरे (और मेरे अपनों के ) लिए ढेर सारी स्मृतियाँ फोटो की शक्ल में भी संजो लीं . कई रोज़ से इसे आपके साथ बांटने की सोच रही थी ...आज कर ही डाला ये काम....



ओडिसी की सिद्धहस्त कलाकार डोना गांगुली से मिलना हमेशा ही सुखद होता है.   मैंने बनारस में उनके कई कार्यक्रम में संचालन किया है   और हर बार उनके अहंकार रहित मधुर व्यवहार,विनम्र-सौम्य-आत्मीय व्यक्तित्व से प्रभावित   हुई   हूँ.

कहते हैं संगीत की अथाह समझ रखने वाले ऐसे श्रोता काशी के अलावा कहीं और मिलने मुश्किल हैं.

संगीत-सरिता में तन-मन-भाव से डूबते-उतराते लोग...

पहले दिन कथक प्रस्तुत करती कोरियाई मूल की भारतीय संस्कारों को स्वीकर चुकी काशी की कलाकार सुश्री किम जिम यांग.

ओडिसी प्रस्तुत करती डोना गांगुली और साथी कलाकार

ओडिसी प्रस्तुत करती डोना गांगुली और साथी कलाकार

ग्रीन रूम में प्रस्तुति से पूर्व पं० अजय पोहनकर और श्री अभिजीत पोहनकर

मंच पर श्री अभिजीत पोहनकर

मंच पर पं० अजय पोहनकर

ग्रीन रूम में श्री अभिजीत बैनर्जी (तबला) और पं० भवानी शंकर (पखावज) के साथ

श्री अभिजीत बैनर्जी (तबला) और पं० भवानी शंकर (पखावज) प्रसन्न मुद्रा में

ग्रीन रूम में ओडिसी डांसर सुश्री रीला होता

मंच पर पं० तरुण भट्टाचार्य संतूर वादन करते हुए

कार्यक्रम प्रस्तुति से पूर्व पं० सतीश व्यास (संतूर) के साथ श्री अभिजीत बैनर्जी (तबला) और पं० भवानी शंकर (पखावज)

सुविख्यात ओडिसी डांसर श्रीमती सुजाता महापात्रा (बीच में) के साथ हम....
संगीत-आनंद में डूबे भक्त श्रोताजन

ग्रीन रूम में पद्मभूषण पं० छन्नूलाल मिश्र

मंच पर पं० प्रतीक चौधरी सितार वादन करते हुए

मंच पर पद्मभूषण पं० छन्नूलाल मिश्र

ग्रीन रूम में श्री राहुल शर्मा (संतूर)

प्रस्तुति से पूर्व पं० कुमार बोस (तबला) पं० धर्मनाथ मिश्र और पं० देवज्योति बोस (सरोद) आत्मीय मुद्रा में
संगीत का आनंद लेते पं० भीमसेन जोशी के शिष्य पं० संजीव जागीरदार

ग्रीन रूम में सबके साथ पद्मभूषण पं० राजन मिश्र

मंच पर पं० हरीश तिवारी
मंच पर दिव्य मूर्ति से विराजमान पं० राजन-साजन मिश्र,
यकीन मानिये ये तरोताज़ा से दिखने वाले चेहरे पाँच रातों के जागे हुए हैं लेकिन संगीत का अलौकिक आकर्षण ऐसा कि पलक झपकने को ही नही तैयार...नींद को कुछ देर और इंतज़ार करने के लिये कह कर इस क्षण तो बस संगीत का रस पीना है. अंतिम निशा बीतने के पश्चात सुबह पं० राजन-साजन मिश्र को सुनते लोग.....!
मंच पर पद्मभूषण पं० राजन-साजन मिश्र, पं० कुमार बोस और सबका आह्वान और अभिनन्दन करती मैं...!


सागर के चन्द मोती से ये बस कुछ पल हैं जिन्हें मैं समेट पाई...कितना कुछ बस अनुभूतियों का ही अंश है जिन्हें बाँट पाना संभव नहीं. उद्घोषणा के दायित्व निर्वहन के साथ सब कुछ समेट-बटोर पाना नहीं हो पाया लेकिन जितना भी है निश्चित रूप से मेरे लिये अनमोल है.

मंगलवार, 1 मार्च 2011

सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को मिल जाए तरुवर की छाया...!

ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है, मैं जब से शरण तेरी आया ..... मेरे राम !
 ...और ऐसे अवर्णनीय सुख की अनुभूति को शब्द दे पाना सहज नहीं . सोमवार , २८ फरवरी को शर्मा बंधु  को प्रत्यक्ष सुनना ऐसी ही अनुभूति दे गया . जैसा कि उन्होंने ही बताया कि पिछली दफ़ा वो सन १९७६ में वाराणसी आये थे . २०११ में उनका एक बार फिर काशी आगमन हमारे लिए यादगार रहा . श्री महामृत्युंजय महोत्सव २०११ की तीसरी निशा में लोग रात लगभग बारह बजे तक निःशब्द , एकाग्र ,तल्लीन हो कर सम्मोहित भाव से भजन सुनते रहे .मुन्नी और शीला की दीवानगी के इस दौर में श्रोता को राम नाम रसपान कर आनंदित, आह्लादित ,मुदित और मगन होते देखना एक सुखद  आश्चर्य से कम न था . अमूमन किसी कार्यक्रम से लोग  रात दस , साढ़े दस बजे तक निकलने लगते हैं विशेषकर जब फरवरी की हलकी ठण्ड भरी रात हो ..., लेकिन शर्मा बंधु को सुनने के लिए तमाम लोग रात नौ बजे के करीब हॉल में पहुंचे ताकि उन्हें पूरा सुन सकें .    भजनों की श्रृंखला को विराम देते हुए जैसे ही उन्होंने अपना सर्वप्रिय भजन   " सूरज की गर्मी ...." आरम्भ किया सुनने वाले रामनाम अमृत में आकंठ डूब गए . उद्घोषिका  होने के नाते मुझे भी उनके साथ कुछ आत्मीय पल बिताने का अवसर मिला जो मेरे लिए यादगार है . 

शनिवार, 29 जनवरी 2011

नज़र.....


पता है न...,
होती है
हर ऊँगली की अपनी छाप,
जो रह जाती है उन चीज़ों पर बाद में भी 
जिन्हें उन ऊँगलियों ने छुआ हो...,

सोच रही हूँ ,
काश........
ऊँगलियों ही की तरह
नज़रों की भी अपनी कोई छाप होती
तो 
कितना अच्छा होता...

 तब
जिन रास्तों से कभी गुज़रे थे तुम...,
जिन चीज़ों को कभी देखा था तुमने...,
जिन नज़ारों को कभी तुम्हारी नज़र ने छुआ था...,

उन सब पर 
अब भी होता 
तुम्हारी नज़र का स्पर्श...,

और फिर
जब भी जी चाहता ,
मैं जाकर उन रास्तों पर
छू लेती,
 तुम्हारी नज़रों को दोबारा
अपनी नज़रों से...,

और महसूस कर लेती तुम्हें...
तुम्हारे जाने के बाद भी... !



शनिवार, 22 जनवरी 2011

कविगोष्ठी से हुया सेतु के कार्यक्रम कैलेण्डर- 2011 का शुभारम्भ....!

बनारस की कल्चरल संस्था " सेतु " ने पिछले पन्द्रह से भी ज़्यादा सालों से इस पावन नगरी की भाव-धारा को प्रवाहमान रखने में अपनी उल्लेखनीय भूमिका निभाई है . इसके बैनर तले वर्षपर्यन्त होने वाली कला-नाटक-संगीत-साहित्य और समाज-सेवा से जुडी गतिविधियाँ इसकी पहचान बन चुकी हैं. पिछले नौ सालों से मुझे भी समन्वयक के रूप में इससे जुडने का सुअवसर मिला है.
इस वर्ष से सोचा है कि मैं इसके अन्तर्गत होने वाले छोटे ( महत्व नहीं, आयोजन-संयोजन की द्रिष्टि से...) और बडे सभी कार्यक्रमों का अपने ब्लोग पर भी उल्लेख करूँगी ताकि ये सारे अनुभव और उपलब्धियाँ आप सब अपनों से भी बाँट सकूँ. चाहती तो थी कि " सेतु " के लिये अलग से एक ब्लोग ही बना दूँ मगर अभी किन्हीं वजहों से ऐसा करना संभव नही हो पा रहा तो तब तक मेरे आकाश पर ही " सेतु " का एक कोना....!
पढने में सुविधा हो इस लिये सेतु - भाव से भाव तक...  के नाम से एक नया लेबल रच रही हूँ ताकि इनडैक्स के माध्यम से पोस्ट ढूँढने में आसानी हो. इस क्रम में इस वर्ष की पहली काव्य-गोष्ठी की चर्चा... !
नगर बनारस में शिल्पकला, चित्रकारी और काव्य रचना  के लिये पहचाने जाने वाले एवं बेहद सरल-सपाट और साफ़ मन के साथ खरा बोलने वाले इंसान के रूप में सराहे जाने वाले श्री नरोत्तम शिल्पी का ६७ वाँ जन्मदिन
" सेतु " ने अपने ही कार्यालय के सभा-कक्ष में बीस जनवरी की शाम को मनाया. वैसे जन्मदिन तो बस बहाना था.दरअसल ये बनारस और सेतु के मिज़ाज के अनुरूप साहित्यिक व आत्मीय परिवेश में एक लघु आयोजन का प्रयास था जो सब अपनों और वरिष्ठजन के आशीर्वाद से सफ़ल रहा.
लगभग तीन / साढे तीन घंटे चली इस गोष्ठी में पहले सबने शिल्पी जी को यथोचित स्नेह-शुभकामना-आशीर्वाद प्रदान किया, तदोपरान्त जल-पान के बाद काव्य-गोष्ठी के माध्यम से उन तक काव्यात्मक बधाइयाँ प्रेषित की गयीं. इस लघु परन्तु सुन्दर आयोजन की गरिमा बढाते हुये अध्यक्ष-पद सुशोभित किया यू०पी०रत्न और अन्तर्राष्ट्रीय ख्यातिलब्ध नवगीतकार पं० श्रीक्रिष्ण तिवारी ने. नगर के जाने-माने साहित्यकारों एवं रचनाकारों ने आयोजन को सार्थक किया. इस कुछ चित्रों के माध्यम से आप भी जुड जाइये उस भावमयी संध्या से.....
कार्यक्रम में उपस्थित वरिष्ठजन... श्री अशोक आनंद, पं०श्रीक्रिष्ण तिवारी, शिल्पी जी, पं० मारकन्डेय त्रिवेदी, श्री लालचन्द गुप्त व अन्य....

अध्यक्ष महोदय का अभिनंदन करते शिल्पी जी...
शिल्पी जी को जन्मदिन की शुभकामनाएं देते आकाशवाणी, वाराणसी के वरिष्ठ उद्घोषक एवं संवेदनशील रचनाकार                श्री अभिनव अरुण....

एक आत्मीय क्षण....
अपने उदगार व्यक्त करते शिल्पी जी....
स्थानीय मीडिया से मुखातिब पं० श्रीक्रिष्ण तिवारी जी...
कविताओं का आस्वादन करते श्री विनय कपूर ‘गाफ़िल’ , डा० मंजरी पाण्डेय व अन्य...
भावविह्वल शिल्पी जी....
 वरिष्ठ अधिवक्ता एवं संवेदनशील कवि डा० राम अवतार पाण्डेय और श्री अरुण कुमार पाण्डेय " अभिनव "...
सबको संबोधित करते वरिष्ठ समीक्षक, रचनाकार,प्रकाशक एवं हिन्दी की विद्वान डा० जितेन्द्र नाथ मिश्र जी...
अपनी रचना का पाठ करते अरुण कुमार पाण्डेय " अभिनव " जी...
रचना-पाठ करते श्री धर्मेन्द्र गुप्त "साहिल" जी...
रचना पाठ करते शंकर "बनारसी"...
शिल्पी जी को आशीर्वाद देते अध्यक्ष महोदय....
पं० श्री क्रिष्ण तिवारी जी के साथ मैं "प्रतिमा "
"सेतु" के सचिव एवं कार्यक्रम संयोजक श्री सलीम राजा...
 

अवसाद के भय से जूझता मध्यमवर्ग !

शायद आपको पता हो कि भारतीय समाज में पाया जाता है एक 'मध्यमवर्गीय तबका'। उच्च वर्ग की तरह  कई पीढ़ियों के जीवनयापन की चिंताओं से मुक...