
मानव सभ्यता, बीत चुकी जिन घटनाओं से आज भी शर्मसार है , ये चित्र उन्ही में से एक का है । इतिहास का वो काला पृष्ठ , जिस पर नज़र पड़ते ही आज भी सबकी रूह फ़ना हो जाती है । क्या लिखा है इस काले पृष्ठ पर ... ? अंहकार, जिद और ग़ुस्से में पगलाए दुनिया के सबसे दम्भी , मगरूर और ताकतवर देश की काली करतूत का कच्चा चिठ्ठा... । दूसरा विश्व युद्ध समाप्ति की ओर था , लेकिन इससे पहले मानव - इतिहास की सबसे भयावह त्रासदी घटने की प्रतीक्षा कर रही थी । छः महीने तक जापान के ६७ शहरों पर बमबारी करने के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी एस ० ट्रूमैन ने छः और नौ अगस्त , १९४५ को हिरोशिमा और नागासाकी शहरों पर परमाणु बम गिराने का आदेश दिया । आका के हुक्म की तामील हुयी । परमाणु बम गिराए गए और लगभग एक लाख चालीस हज़ार लोग मौत की आगोश में समा गए । जो बचे , उनके हिस्से आई ,मौत से भी बदतर ज़िन्दगी । एक अध्ययन के अनुसार , इस त्रासदी में बचे लोगों में से ज्यादातर विकिरण से फैले कैंसर और ल्यूकेमिया के कारण मारे गए और ये सिलसिला आज भी जारी है । अपनी सभ्यता , विवेक और विकास का ढोल पीटते ,आत्ममुग्धता में इतराते और अपने गौरवशाली (?) अतीत का प्रशस्तिगान करते मानव समाज के लिए इस भयावह हादसे का कलंक मिटा पाना असंभव है । ये एक ऐसी शर्मनाक याद है जिससे मानव सभ्यता कभी निजात नही पा सकती, और इससे भी ज़्यादा शर्म इस बात की , कि हमने इस खौफनाक तबाही से अब भी सबक नही लिया है । ख़तरनाक हथियारों को जमा कर लेने की होड़ में सबसे आगे रहना ही आज विकसित और शक्तिशाली का पैमाना है, और छोटा हो या बड़ा ,कोई भी इस पैमाना पर कम साबित नही होना चाहता । क्या डा० बशीर बद्र की ये पंक्तियां ताकत की हवस में पागल इंसानों को कोई सबक दे सकती हैं-
'' उम्र बीत जाती है एक घर बनने में , तुम तरस नही खाते बस्तियां जलने में ... ! ''
प्रतिमा सिन्हा ...
4 टिप्पणियां:
bahut hi acchi post , kuch yaade aisi hoti hai ,jo generation to generation paas on hoti rahti hai lekin un yaado ka dard kam nahi hota . ye waakya bhi kuch aisi hi yaad hai
regards
vijay
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Kaash har koyi aisee soch rakhe..!
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सुन्दर सोच के साथ लिखी गयी बेहतरीन पोस्ट. आभार.
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