शनिवार, 1 अगस्त 2009

(5)एक आदत सी बन गई है तू .....

कई दिनों बाद आज आपने आकाश में परवाज़ भरने का वक्त मिला है,लग रहा है कि जाने कितने दिन बीत गए ।
जब से आकाश का ये नन्हा सा कोना अपने लिए खोज निकला है, एक नया ही जोश महसूस कर रही हूँ । पिछले तीन दिन काफी व्यस्त बीते । ३१ जुलाई को विश्व प्रसिद्ध साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद जी की जयंती थी । इस अवसर पर हमारी सेतु सांस्कृतिक संस्था ने इस बार तीन दिवसीय आयोजन किया । पहले दिन ' प्रेमचंद साहित्य में नारी विमर्श ' विषय पर गोष्ठी , दूसरे दिन ' प्रेमचंद नाट्य पद यात्रा ' और तीसरे दिन ' प्रेमचंद जी के जन्म स्थान लमही गाँव में उनकी लिखी कहानिओं का नाट्य मंचन । सब कुछ बहुत ही रचनात्मक और संतुष्टिपूर्ण रहा । बनारस जैसे सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व के शहर में हमने अपना प्रवाह बनाये रखा है ये हमारे लिए तोष का विषय है मगर ये एहसास भी है कि अभी बहुत कुछ करना है । मैंने विस्तृत आकाश का ये एक नन्हा पृष्ठ अपने लिए इसी लिए चुना है ताकि मै उन जाने - अजाने चेहरों और नामों तक पहुँच सकूं जिनकी सोच, विचार और कार्य विधि विशेष है । मैं भी उनसे जुड़ कर ख़ुद में नयापन और सृजनशीलता का विकास कर सकूं । आज अपने ब्लॉग पर तीन विशिष्ट जन के विचार अपने लिए पाकर मैं प्रफुल्लित हो उठी । लगा , अपना प्रयास सफल हो रहा है । अगर आप भी मेरे आकाश में मुझसे मिलें तो अपनी बेशकीमती राय ज़रूर दीजियेगा । मेरी लेखनी आपसे जुड़ कर और सशक्त होगी । मैं कह सकूंगी '' विस्तृत नभ का एक कोना आखिर मेरा हो ही गया '' ।

आकाश में अपने हिस्से के रंग तलाशती मैं ' प्रतिमा ' ...................... !

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

tummay aaj bhe wo aag hai jiskay karan tum mujhay hamesha acche lage ,is aag ko aisay he jala ker rakho. tum is bheed say alag ho shaayed tumko samjhna bahut aasan hai per uskay leeeay jo such may aisa kerna chahaty hai .

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