गुरुवार, 24 सितंबर 2009

एक सपना ...!

मैं अक्सर सपने में देखती हूँ
नर्म ,श्वेत ,सपनीले बादलों तक जाता हुआ
एक मखमली रास्ता ... ,
और उस रास्ते के पार ,
एक छोटा , मगर बेहद प्यारा संसार ,
वो संसार ,जो 'हमारा' है... ।
जिसमें और कोई नहीं
मेरे और तुम्हारे सिवा ...,
और उस सपनीले संसार को
लम्हा भर के लिए
सजा लेती हूं
सारे रंग , सारी खुशबुओं से ... ।
और उस पल लगता है
जैसे
तुम मुझे बाहों में समेटे
आसमान के सादे कैनवास पर
जिंदगी की बेहद हसीन कविता लिख रहे हो ...
और
मैं तुम्हारे काँधे पर सिर रख कर
उन बादलों के पार
चमकते - झिलमिलाते
सितारे गिन रही हूं ... ।


प्रतिमा !!!!!!!

सोमवार, 21 सितंबर 2009

ईद मुबारक ...




चाहत के जाम लेकर ,
दिलकश पयाम ले कर ,
खुशियां तमाम लेकर ,
फिर ईद आ गई है !
कोई भी शिकायत हो ,
कैसी भी अदावत हो ,
मन में न कुछ भी रखना ,
सबको गले लगाना,
ये जश्ने दोस्ती है ,
पैगामेज़िंदगी है ,
सबको यही खुशी है ,
कि ईद आ गई है ।
बच्चे उमंग में हैं ,
मस्ती तरंग में हैं ,
घर -घर से सेवईयों की ,
खुशबुयें उठ रही हैं ,
राहों पे हैं निगाहें ,
हर लब पे हैं दुआएं,
उठती हैं ये सदायें ,
लो , ईद आ गई है ।

प्रतिमा !!!!!!!!

रविवार, 20 सितंबर 2009

ऐसा हो जाने दो ...

सदाएदिल को हवाओं में बिखर जाने दो ।
उदास रात की तक़दीर संवर जाने दो ।
ग़मों के बोझ को कब तक उठाए रक्खोगे ,
अब तो पत्थर को कलेजे से उतर जाने दो ।
फूल की तरह इनसे खुशबुएँ भी उठ्ठेगीं ,
पहले ज़ख्मों को ज़रा और निखर जाने दो ।
कैसे तुम रोकोगे उड़ते हुए परिंदे को ,
मन की मर्ज़ी है ,वो जाता है जिधर ,जाने दो ।

प्रतिमा !!!!!!!!

शुक्रवार, 18 सितंबर 2009

एक धोखा ...!


ये सहरा किस कदर फैला हुआ है ।
समंदर का मुझे धोखा हुआ है ।
तू उसकी खिलती मुस्कानों पे मत जा ,
वो अन्दर से बहुत टूटा हुआ है ।
पटकती है लहर , सिर साहिलों पर ,
ये मंजर मेरा भी देखा हुआ है ।
बनेगी बात कैसे अब हमारी ,
ये धागा , बेतरह उलझा हुआ है ।
प्रतिमा !!!!!!!!

शुक्रवार, 11 सितंबर 2009

मकसद


कितनी
छोटी -छोटी ख्वाहिशें,
छोटे - छोटे सपनें ,
मुट्ठी में भरे ,
जी रही हूं मैं
इन दिनों ,
बहुत खुशी से ... ,
तुमसे मिल लेना ,
तुम्हें देख लेना ,
बातें कर लेना तुम्हारी ,
बस इतना ही ... ,
और
जैसे मिल जाती है ज़िन्दगी
आज के लिए ,
मिल जाता है मकसद
कल के लिए !!!!!!!!
"मैं '' प्रतिमा

शुक्रवार, 4 सितंबर 2009

हम बेटियां ...!


हम बेटियां ... ,
फूल से भी नाज़ुक ,
ओस की बूँद से भी स्निग्ध ,
बादलों से भी चंचल ,
तितली के परों से भी कोमल ,
हम बेटियां ... ,
जनमेगीं ... तो ...
बनायेगीं , इस दुनिया को और भी सुंदर ,
देगीं , सृजन को ..., निर्माण को ...,
नए अर्थ ...
रचेगीं संभावनाओं के नए शिखर ... ,
हम बेटियां ...,
जनमेगीं ..., तो ...,
हर लेगीं हर पीड़ा मन की ,
संजोयेंगीं विश्वास , भावनाओं का ,संबंधो का ,
उकेरेगीं उम्र के खाली पन्नों पर जीवन की नयी कविताएँ ,
हम बेटियां ... ,
अपनी निश्छल मुस्कराहट से भर देंगीं ,
जग भर की रीती झोली...,
फिर क्यों लगते हो पाबन्दी हमारे जन्म पर ...?
क्यों मार डालते हो हमें जीने से पहले ...?
लेने दो हमें जन्म ...
क्योंकि,
हम बेटियां ही जन्म लेकर बनायेगीं
तुम्हारी इस असंतुलित हो चुकी सृष्टि को ,फिर से ,
जीवन के योग्य ... !
''मैं'' प्रतिमा !!!!!!

मंगलवार, 1 सितंबर 2009

एक सुंदर अनुभव ...!




सम्पूर्ण विश्व को अपनी मोहन वीणा के सुरों से मोहने वाले महान कलाकार पद्मश्री पंडित विश्व मोहन भट्ट जी को कौन नहीं जानता । अपने काम के सिलसिले में यूं तो मुझे अक्सर ही बड़े लोगों और गुरुजन का सानिध्य पाने का सुअवसर मिलता रहता है लेकिन पिछले दिनों जब पंडित वि० मो० भट्ट जी से मिलने का सुयोग बना तो पहला विचार मन में यही आया कि ये अनुभव आपसे भी बंटाना है । आख़िर मेरे स्वप्नाकाश में मेरे सहचर अब आप भी तो हैं । पंडित जी जैसे सरल ,स्वर्ण हृदय , स्नेही , मृदुभाषी ,आत्मीय अंतर्राष्ट्रीय महान कलाकार से वो बहुत ही सहज और अन्तरंग मुलाक़ात मेरे जीवन का अविस्मरणीय अनुभव है और ये कुछ चित्र उन्हीं यादगार पलों के स्मृति - अंश हैं ।
''मैं'' प्रतिमा .....!

अवसाद के भय से जूझता मध्यमवर्ग !

शायद आपको पता हो कि भारतीय समाज में पाया जाता है एक 'मध्यमवर्गीय तबका'। उच्च वर्ग की तरह  कई पीढ़ियों के जीवनयापन की चिंताओं से मुक...