मंगलवार, 8 दिसंबर 2009

सरोद घर


पिछ्ले दिनो ग्वलियर जाना हुआ। सांस्कृतिक विरासत का निगहबान शहर , जिसे देख कर इतिहास से रूबरू होने की अनुभूति होती है । सिंधिया राजपरिवार का वैभवशाली अतीत समेटे जय विलास पैलेस , लगभग छः से भी ज़्यादा दशको का इतिहास संजोये ग्वालियर का किला , राजामानसिंह और गूजरी रानी मृगनयनी की प्रेम कहानी का साक्षी गूजरी महल ,मोहम्मद गॉस और तानसेन का मकबरा सब कुछ विस्मित कर देने वाला है । लेकिन इन्ही सब के बीच शहर के जीवाजी गंज क्षेत्र में है एक ऐसी इमारत, जो बहुत ही गरिमा और गहन दायित्व बोध के साथ न सिर्फ़ ग्वालियर , बल्कि पूरे भारत की सांगीतिक विरासत को सहेजे हुए है और उस इमारत का नाम है सरोद घर । नाम से ही स्पष्ट होता है कि सरोद घर में प्राचीन भारतीय संगीत वाद्य यंत्रो को संजो कर रखा गया है । इस नायाब संग्रहालय में सरोद , वायलिन ,रूद्र वीणा , सितार , तानपूरा , सुरमंडल, तबला देवप्रतिमाओ की तरह पूजित स्थान पर रखे गए हैं और ये वाद्य यन्त्र अति विशिष्ट भी हैं ,क्योकि इन्हें किसी बाज़ार या दुकान से खरीद कर नही सजाया गया है बल्कि ये भारतीय शास्त्रीय संगीत के महान गुरुजन के उपयोग किए हुए , निजी वाद्य यन्त्र हैं जिन्हें यहाँ संगृहीत करने के लिए उनके प्रियजन या परिजन द्वारा उपलब्ध कराया गया है । इसके अतिरिक्त सरोद घर में शास्त्रीय संगीत की लगभग सभी महान हस्तियों की तस्वीरो का भी संग्रह किया गया है जो इस स्थान को और भी पूज्य बनता है । पर इस स्थान की महिमा बखानने को शायद इतना ही काफ़ी नही होगा क्योकि इस सरोद घर की सबसे बड़ी खासियत है इसका उस्ताद हाफ़िज़ अली खान साहेब और उस्ताद अमज़द अली खान साहेब का अपना घर होना । एक अजब सी खुशबू है जो इस घर में घुसते ही सारे वजूद को घेर सी लेती है । मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही सामने आँगन में उस्ताद हाफ़िज़ अली खान साहेब की मूर्ती पर नज़र पड़ती है और लगता है जैसे आशीष मिल गया । गेरुए गुलाबी और आफ व्हाईट रंग के संगमरमरी पत्थरो से तराशा गया सा ये खूबसूरत घर मानो हरियाली का पैराहन पहने इतरा सा रहा है अपनी किस्मत पर .चारो ओर हरे - भरे पौधे , आँगन के बीच में नीम का पेड़ , एक अजब रूहानी सुकून उस वक्त कुछ और बढ़ सा जाता है जब ये मालूम चले कि इसी पाक घर में उस्ताद हाफ़िज़ अली खान साहेब रहा करते थे , रियाज़ किया करते थे और इसी नीम के तले उस्ताद अमज़द अली खान साहेब सुरों में अपना जीवन तलाशा करते थे और इसी आँगन में उस्तादों के आशीर्वाद और पिता की निगरानी में अमान अली और अयान अली बंगश ने अपनी महान सांगीतिक विरासत को सँभालने का जिम्मा अपने मज़बूत कंधो पर लिया था । सच ये अद्भुत अनुभूतियाँ वहा जा कर ही समझी जा सकती हैं । ये सरोद घर उस्ताद अमज़द खान साहेब का निजी प्रयास और योगदान है जो अतुलनीय है । अगर आप भारतीय संस्कृति और शास्त्रीय संगीत परम्परा में आस्था व श्रद्धा रखते है और ग्वालियर जाने वाले है तो सरोद घर ज़रूर जाइयेगा ,आपको बेहद खुशी होगी और अपनी विरासत पर फख्र भी ... !
"मैं " प्रतिमा !!!

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