आजकल स्टार प्लस पर कई लोग सच का सामना कर रहे हैं और रूपये जीत रहे हैं । ये बात दूसरी है कि उनका सच सुनने वालों का सर शर्मिंदगी से झुका जा रहा है । जिंदगी में गलतियां शायद हर किसी से होती होगी मगर कभी-कभी बीती बातो को भुला कर अपने आज में जीना ज्यादा सुकून देता है । ख़ुद को भी और दूसरों को भी । फिर भला ऐसी बातों की बेशर्म नुमाइश का क्या मतलब ? और मज़े की बात ये कि अगर सच bolne wala बेचारा नौ सच के बाद agla झूठ बोल दे to pahle कि jeeti sari रकम भी डूब jati है । यानि maya मिली न ram । सच बोल कर phajihat हुई , रूपये भी गए । कितना achchha होता कि ऐसे programs में आम आदमी को निशाना बनने की bajaay politicians को बुलाया jata और उनके सच की पोल kholi jati । kuchha to bhalaa होता लोकतंत्र का ।
pratima sinha
माटी में बीज सा ख़ुद को बोना, बरखा सा ख़ुद ही बरसना, फिर उगना ख़ुद ही जंगली फूल सा. कांटना-छांटना-तराशना-गढ़ना ख़ुद को आसान नहीं होता. सिद्धि प्राप्त करनी होती है ख़ुद तक पहुँचने के लिए. धार के विपरीत बहना पड़ता है थकान से भरी देह उठाये तय करना पड़ता है रास्ता बिलकुल अकेले. दूसरों पर जय पाने से पहले ख़ुद को जय करना (जीतना) होता है...तब बनता है कोई "स्वयंसिद्ध" !!
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