
कुछ पल शब्दों में बांधे नहीं जा सकते ,बस महसूस ही किए जा सकते हैं । ये एक ऐसा ही पल था । मैं सागर के बिल्कुल करीब थी । अपनी आंखों से उसकी अनंत असीमता को निहारती , उसकी अथाह गहराई में झाँकने का असफल प्रयास करती ,उसकी अकूत जलनिधि को अपनी नन्हीं अंजुरी में भर लेने का असंभव स्वप्न देखती ... , पूरी तरह चमत्कृत और निःशब्द ...

मैं खिलखिला कर हंस पडी ।
''मैं '' प्रतिमा ...
(On Colombo Sea Beach-Srilanka)
3 टिप्पणियां:
जैसे बरसों बाद मिला कोई अपना सा साथी मीठी सी गुदगुदी कर अपनी दोस्त को हंसा देना चाहता हो ।
यही वो एहसास है जिसको मन तलाशता है.
AAPKA LIKHA BHI JAISE SHABD NA HO KAR KOI EHSAAS HO .... BAHOOT KHOOBSOORAT
owoo .. mast hai
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