गुरुवार, 22 अक्तूबर 2009

एक खूबसूरत पल !


कुछ पल शब्दों में बांधे नहीं जा सकते ,बस महसूस ही किए जा सकते हैं । ये एक ऐसा ही पल था । मैं सागर के बिल्कुल करीब थी । अपनी आंखों से उसकी अनंत असीमता को निहारती , उसकी अथाह गहराई में झाँकने का असफल प्रयास करती ,उसकी अकूत जलनिधि को अपनी नन्हीं अंजुरी में भर लेने का असंभव स्वप्न देखती ... , पूरी तरह चमत्कृत और निःशब्द ...



अचानक ही वो प्रशांत -धीर -गंभीर मानों चंचल हो उठा जैसे मेरी उदास खामोश निगाहों को पढ़ कर मेरी उदासी को अपनी उदात्त लहरों के साथ बहा ले जाना चाहता हो । जैसे बरसों बाद मिला कोई अपना सा साथी मीठी सी गुदगुदी कर अपनी दोस्त को हंसा देना चाहता हो । और सचमुच .... जाने कौन सी मीठी बात कही उसने मेरे कानों में , कि
मैं खिलखिला कर हंस पडी ।

''मैं '' प्रतिमा ...

(On Colombo Sea Beach-Srilanka)

3 टिप्‍पणियां:

M VERMA ने कहा…

जैसे बरसों बाद मिला कोई अपना सा साथी मीठी सी गुदगुदी कर अपनी दोस्त को हंसा देना चाहता हो ।
यही वो एहसास है जिसको मन तलाशता है.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

AAPKA LIKHA BHI JAISE SHABD NA HO KAR KOI EHSAAS HO .... BAHOOT KHOOBSOORAT

Dibyanshi ने कहा…

owoo .. mast hai

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