सोमवार, 12 अक्तूबर 2009


ज़िन्दगी ,
तू अक्सर किसी एहसास सी आती है
और
मुझे छूकर ...
बहुत करीब से ,
हौले से गुज़र जाती है ।
अच्छा लगता है ,
यूं तेरा हौले से छूकर गुज़रना ,
सच ...
बहुत ही भला लगता है ,
तेरा यूं मुझे छू लेना ... ।
हाँ , ये और बात है कि
तू मुझे छू कर ,अगर यूं गुज़रती नहीं ,
बल्कि यहीं - कहीं ,
मेरे आस - पास ही ठहर जाती,
तो और भी अच्छा होता ...,
मगर फिर भी ,
तेरा मुझे यूं छू लेना भी
कोई कम बड़ी बात नहीं , ज़िन्दगी ... !
क्योंकि
ऐसा भी सबके साथ कहां होता है ?
तेरी छुअन, तेरा एहसास भी हरेक को कहां मिलता है ?
प्रतिमा ... !

2 टिप्‍पणियां:

Chandan Kumar Jha ने कहा…

जिन्दगी का बहुत ही सुन्दर एहसास इस कविता में अंकित हुआ है । बहुत ही भावपूर्ण रचना ।

संजय भास्‍कर ने कहा…

सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।

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