बरस बिता कर आख़िर आ गया वो दिन , जिसका इंतज़ार हर बहन और भाई को पूरे बरस रहता है । रक्षाबंधन का पर्व हमारी नैसर्गिक स्नेह भावना का मूर्त रूप है जो हमें याद दिलाता है कि दुनिया में अब भी कुछ है जिसका मोल नही लगाया जा सकता । लेकिन अफ़सोस , इस भौतिकवादी युग में सरे बाज़ार अपने ज़मीर का भी दाम लगा कर विकास का ढोल पीटने वाले हमारे समाज के तथाकथित वर्तमान नीतिनिर्माता अमोल को भी बेमोल कर देने के अपने हुनर से बाज़ नही आते हैं और देखते ही देखते इस पावन स्नेह बंधन पर भी दाम की पर्चियां चस्पा कर दी जाती हैं । राखी - पर्व के करीब आते ही हमें बताया जाने लगा कि अगर भाई ने अपनी प्यारी बहना को एक विशेष ब्रांड का मोबाइल फोन उपहार में नही दिया तो उसके प्यार की सच्चाई पर खतरा हो सकता है । अन्य दूसरे ब्रांड्स के और भी कीमती उपहार बाज़ार में भाई - बहन के प्यार को अपनी कसौटी पर कसने को तैयार शो केस की शोभा में वृद्धि कर रहे हैं । भाई किसी भी शुभ अवसर पर बहन को उपहार दे ये तो सचमुच अच्छी बात है मगर उपहार ही प्रेमाभिव्यक्ति की शुद्धता की कसौटी बन जाए ये अच्छी बात नही है । बचपन में लेन-देन की शर्त या उम्मीद पर उपजी स्नेह की कोमल कोंपल कभी - कभी आगे चल कर एक ऐसी बेल बन जाती है जो मन से लिपट कर तब बहुत तकलीफ देती है जब कोई उम्मीद पूरी न हो सके । आखिर बचपन की नन्ही आशाएँ हमेशा तो नन्ही नही रहती हैं न .......! राखी के इस पावन दिन भाई अपनी बहन को उपहार ज़रूर दे क्योंकि आख़िर ये हर बहन का हक भी है और हर भाई का फ़र्ज़ भी , मगर कितना अच्छा हो कि ये उपहार बाज़ार में कीमत दे कर खरीदी जा सकने वाली चीजों की बजाय वो सम्मान , वो आदर ,वो पाक जज्बा हो जिसकी हर स्त्री हकदार होती है । कितना अच्छा हो अगर इस पावन दिन हर भाई ,बहन के सम्मान की रक्षा का सचमुच संकल्प ले और सम्मान भी केवल अपनी सहोदरा बहन का नही , हर लड़की का । छेड़छाड़ की घटनाएं , यौनहिंसा की प्रताड़नाएं और बलात्कार के हादसे जब समाज में कभी न हो और हर घर की बहन - बेटी किसी भी सड़क चौराहे पर ख़ुद को महफूज़ महसूस कर सके तो समझो कि भाई ने बहन को सच्चा तोहफा दे दिया। रक्षा बंधन के दिन जब मैं भाईयों को कलाई पर राखी बंधे हुए और माथे पर शुभ तिलक लगाये देखती हूं तो सोचती हूं कि क्या इन्होनें लिया होगा नारी के सम्मान का संकल्प ... ?
प्रतिमा ...
माटी में बीज सा ख़ुद को बोना, बरखा सा ख़ुद ही बरसना, फिर उगना ख़ुद ही जंगली फूल सा. कांटना-छांटना-तराशना-गढ़ना ख़ुद को आसान नहीं होता. सिद्धि प्राप्त करनी होती है ख़ुद तक पहुँचने के लिए. धार के विपरीत बहना पड़ता है थकान से भरी देह उठाये तय करना पड़ता है रास्ता बिलकुल अकेले. दूसरों पर जय पाने से पहले ख़ुद को जय करना (जीतना) होता है...तब बनता है कोई "स्वयंसिद्ध" !!
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3 टिप्पणियां:
बहिन प्रतिमा सिन्हा
मेरे ब्लॉग पर टिप्पणी देकर मेरा होसला अफजाई करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया.
मैं इतना काबिल कहाँ जितना आपने मेरे बारे में लिख डाला.
बहिन आप तो खुद ही माशा अल्लाह बहुत अच्छा लिखती हें
बहुत ही सुन्दर आलेख.......लिखती रहे. आभार.
ये वर्ड वेरीफिकेशन हटा दे.....टिप्पणी करने में आसानी होती है.
dear pratimaji, namaskar,apki lekhni me dam hai.mere man ko chhoo liya. plz, likhti rahe.
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