चर्चा है कि सोशल नेटवर्किंग साईट्स बड़े लोगों की नोक -झोक और लड़ाई का नया मैदान बन चुकी हैं । किसी को किसी के भी लिए कुछ भी कहना हो , शोले उगलने हों या फिर फूल बरसाने हों , आज की तारीख़ में सबसे अच्छा तरीका है , अपनी नेटवर्किंग साईट पर जाना और सारी भड़ास निकाल देना । यही वो माध्यम है जहां आपकी बात बिलकुल उसी प्रारूप में छप जाती है ,जैसा आप कहना चाहें । वो भी बिना किसी संपादन के ,सिर्फ एक क्लिक पर । अपने को अभिव्यक्त कर पाना सचमुच इतना आसान कभी नहीं था । मुझे लगता है इस विषय पर नकारात्मक दृष्टिकोण की बजाय सकारात्मक तरीके से रिएक्ट किया जाना चाहिए । आखिर बात चाहे जैसी क्यों न हो , पहुँच तो अपने मूल रूप में ही रही है और ये एक शुभ लक्षण कहा जा सकता है । ये स्थिति उन दिनों से तो अच्छी ही कही जाएगी जब सेलिब्रिटीज़ और आम लोगों के बीच में एक ख़ास जमात होती थी, जिन पर उन बड़े लोगो की बात को आम जनता तक पहुँचाने का जिम्मा हुआ करता था और जिनके हाथों में किसी भी बात को किसी भी हद तक तोड़मरोड़ कर अपने तरीके से पेश कर देने की विध्वंसकारी ताकत भी ... । कहा कुछ जाता था और लोगों तक पहुँचाया कुछ और जाता था । इस सबके पीछे अपने -अपने निहित स्वार्थों की भूमिका हुआ करती थी और बेचारा कहने वाला दिनों , महीनों , सालों तक सफाई देता फिरता था कि उसने ऐसा नहीं कहा या फिर उसके कहने का वो मलतब नहीं था । बेचारी जनता अलग ही कन्फ्यूज़न में पड़ी रहती थी कि किसे सही माने, किसे गलत । ये स्थिति अगर सौ फ़ीसदी सच नहीं तो पचास फ़ीसदी तो थी ही। समय बदला और समय के साथ हमारे कहने - सुनने के तरीके भी बदले । आज बात चाहे हमारे महानायक की हो , सुपर हीरो की हो , मनपसन्द खिलाडी की हो , या हो किसी विवादित हस्ती की , उनके ब्लॉग पर जाईये और जान लीजिये वो सब कुछ जो वो अपने पक्ष में आपसे कहना चाहते हैं । उन्हीं के भाव ,उन्हीं के विचार , उन्हीं के शब्दों में , बिना किसी दूसरे की मिलावट के . हाँ , बात में खुद कहने वाले ने सच - झूठ की कितनी मात्रा का इस्तेमाल किया है ये परखना आपके विवेक पर निर्भर करता है लेकिन कम से कम आप इतना निश्चिन्त तो हो ही सकते हैं कि जो कुछ आप पढ़ रहे है ये उसी की अभिव्यक्ति है , जिसके नाम पर आप पढ़ रहें हैं ।निश्चित रूप से अभिव्यक्ति की ये पारदर्शिता स्वागत और प्रशंसा के योग्य है ।
-
-