गुरुवार, 24 सितंबर 2009

एक सपना ...!

मैं अक्सर सपने में देखती हूँ
नर्म ,श्वेत ,सपनीले बादलों तक जाता हुआ
एक मखमली रास्ता ... ,
और उस रास्ते के पार ,
एक छोटा , मगर बेहद प्यारा संसार ,
वो संसार ,जो 'हमारा' है... ।
जिसमें और कोई नहीं
मेरे और तुम्हारे सिवा ...,
और उस सपनीले संसार को
लम्हा भर के लिए
सजा लेती हूं
सारे रंग , सारी खुशबुओं से ... ।
और उस पल लगता है
जैसे
तुम मुझे बाहों में समेटे
आसमान के सादे कैनवास पर
जिंदगी की बेहद हसीन कविता लिख रहे हो ...
और
मैं तुम्हारे काँधे पर सिर रख कर
उन बादलों के पार
चमकते - झिलमिलाते
सितारे गिन रही हूं ... ।


प्रतिमा !!!!!!!

4 टिप्‍पणियां:

Chandan Kumar Jha ने कहा…

बहुत सुन्दर भाव अभिव्यक्ति । बेहद खूबसूरत रचना । आभार ।

M VERMA ने कहा…

बेहतरीन भावाभिव्यक्ति. एहसास नितांत वैयक्तिक एवम सघन

vijay kumar sappatti ने कहा…

are , maine pahle bhi comment diya tha , kahan chala gaya

pratima , kya tareef karun is nazm ki jiske shabd apne aap me ek kahani kah rahe hai ..is kavita me mujhe jo sabse jyada pasand aaya , wo line hai ..."tumhare kaandhe par sar rakhkar...." ... main is line ko future ke kisi poem me use karunga ... ijajat hai na ji .

badhai kabul kare..

regards

vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com

दिगम्बर नासवा ने कहा…

sundar bhaavanubhooti है ......... lajawaab likhahai praar का sukhad ehsaas है यह rachna ........

अवसाद के भय से जूझता मध्यमवर्ग !

शायद आपको पता हो कि भारतीय समाज में पाया जाता है एक 'मध्यमवर्गीय तबका'। उच्च वर्ग की तरह  कई पीढ़ियों के जीवनयापन की चिंताओं से मुक...