बुधवार, 25 नवंबर 2009

परिंदों का दर्द

दहशत से भरी थी उनकी नन्ही आँखे ,
उन आँखों में था ,सामने इमारत से उठ रहे धुएं का काला साया ,
जो कल उनकी पहचान थी ,
या यूं कहे ,
कल तक वो थे पहचान ,
उस शानदार बुलंद इमारत के...,
वो नही जानते थे कि क्या हुआ
मगर
था उन्हें भी अंदाज़ , कि हो गया है कुछ ऐसा
जो नही होना चाहिए था ...,
पिछली शाम जहा झूम रही थी जिंदगी ,
आज वही गूँज रहे थे गोलियों के धमाके ,
बुरे ख्वाब जैसे एक हादसे ने
छीन लिया था सारे शहर के साथ
उनका भी सुकून ...,
और
वो
फडफडा कर अपने पंख ,
उड़ते फिर रहे थे ,
हवाओं में इधर से उधर ,
दर्ज करते हुए इस हादसे के ख़िलाफ़
अपना विरोध ... !
शर्मिंदा था सारा मुल्क ,
और शर्मिंदा थे वो मासूम परिंदे ,
वो नन्हे शान्ति दूत भी ,
कि उनके सामने होते हुए भी लग गई ये आग ,
वो भी कायम नही रख सके
अमन अपने शहर का ... !
(गेटवे ऑफ़ इंडिया की पहचान "अमन के दूत " कबूतरों के नाम ......)

प्रतिमा

1 टिप्पणी:

daanish ने कहा…

insaan aur insaaniyat ke
paak jazbe ko bkhoobi darshaati huaa aapka aalekh mn ki gehraayiyoN meiN utar kar
kuchh sawaal kartaa hai....
aur,,,
jawaab ....bhi ti hamee ko hi denaa hogaa....!!

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