




''मैं'' प्रतिमा .....!
माटी में बीज सा ख़ुद को बोना, बरखा सा ख़ुद ही बरसना, फिर उगना ख़ुद ही जंगली फूल सा. कांटना-छांटना-तराशना-गढ़ना ख़ुद को आसान नहीं होता. सिद्धि प्राप्त करनी होती है ख़ुद तक पहुँचने के लिए. धार के विपरीत बहना पड़ता है थकान से भरी देह उठाये तय करना पड़ता है रास्ता बिलकुल अकेले. दूसरों पर जय पाने से पहले ख़ुद को जय करना (जीतना) होता है...तब बनता है कोई "स्वयंसिद्ध" !!
शायद आपको पता हो कि भारतीय समाज में पाया जाता है एक 'मध्यमवर्गीय तबका'। उच्च वर्ग की तरह कई पीढ़ियों के जीवनयापन की चिंताओं से मुक...
2 टिप्पणियां:
वाह जी वाह बहुत अच्छा उनसे हमें भी रूबरू करवाने के लिए आपका धन्यवाद प्रतिमा जी
बहुत सुन्दर प्रतिमा जी.
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