
हम बेटियां ... ,
फूल से भी नाज़ुक ,
ओस की बूँद से भी स्निग्ध ,
बादलों से भी चंचल ,
तितली के परों से भी कोमल ,
हम बेटियां ... ,
जनमेगीं ... तो ...
बनायेगीं , इस दुनिया को और भी सुंदर ,
देगीं , सृजन को ..., निर्माण को ...,
नए अर्थ ...
रचेगीं संभावनाओं के नए शिखर ... ,
हम बेटियां ...,
जनमेगीं ..., तो ...,
हर लेगीं हर पीड़ा मन की ,
संजोयेंगीं विश्वास , भावनाओं का ,संबंधो का ,
उकेरेगीं उम्र के खाली पन्नों पर जीवन की नयी कविताएँ ,
हम बेटियां ... ,
अपनी निश्छल मुस्कराहट से भर देंगीं ,
जग भर की रीती झोली...,
फिर क्यों लगते हो पाबन्दी हमारे जन्म पर ...?
क्यों मार डालते हो हमें जीने से पहले ...?
लेने दो हमें जन्म ...
क्योंकि,
हम बेटियां ही जन्म लेकर बनायेगीं
तुम्हारी इस असंतुलित हो चुकी सृष्टि को ,फिर से ,
जीवन के योग्य ... !
''मैं'' प्रतिमा !!!!!!
8 टिप्पणियां:
ADHBUDH RACHNA ......... KITNI KOMAL, KITNI MADHUR EHSAAS SIMETE, KITNI BHOLI SI RACHNA HAI ...... SATY, SAARTHAK AUR HAR SAMVEDAN SHEEL DIL KE KAREEB .......... BAHOOT HI SUKHAD ANUBHOOTI HAI IS RACHNA KO PADHNA .....
आपने जितनी कोमलता से इन बेटियो का जो स्वरुप बतया है, उसे दुनिया इतनी कोमलता से आपनाती है क्या? मुझे ऐसा लगता है कि बेटियो केलिये जो मानसिकता समाज मे हैउस मानसिकता को बदलने मे यह कविता अवश्य मदद करेगी......आप ऐसे ही लिखते रहे!
बहुत सुन्दर प्रतिमा जी इतनी सुन्दर रचना पढ़ मन भावुक हो उठा. इसी तरह लिखती रहे. आभार
ek beti hi itna sundar likh sakti hai.ek baar phir bahut badhayee.
keep writing.........
दिगम्बर जी,ओम जी और चन्दन जी, वैसे तो धन्यवाद देना बडा ही औपचारिक कार्य है फिर भी मैं दिल से आपका आभार व्यक्त करती हूं , मेरी इस कविता की अनुभूति को अपने सम्वेदनशील मन में संजोने के लिये... !
पिता, पति, भाई, पुत्र और मित्र , सभी रूपों में, जब सभी पुरूष, बेटी यानी नारी-मन की अनुभूतियों के प्रति इतने ही संवेदनशील हो सकें तब जा कर कोई बात बनें.
हम बेटियां ...,
जनमेगीं ..., तो ...,
हर लेगीं हर पीड़ा मन की ,
वाकई बेटी हर पीडा को हर लेती है
सुन्दर रचना
हम बेटियां ही जन्म लेकर बनायेगीं
तुम्हारी इस असंतुलित हो चुकी सृष्टि को ,फिर से ,
जीवन के योग्य ... !
बहत खूब !!
shbdo ki komalta ne beti ke artho ko bahut hi komaltaa se prakat kiya he/ me samjhta hu..beti hi jeevan he/ bas fir rah kyaa gaya tippani ke liye/ 'jeevan' me vo sab kuch antarnihit he jo kaha jaanaa he/ umda rachna/
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