शाख से टूट कर बिखरते ,
पीले पत्तों के साथ ,
कुछ और भी है ,
जो बिखर रहा है ,
वक्त है शायद ... ,
हर सुबह - दोपहर ,
शाम - रात के साथ ,
पल - पल बीतता
कुछ और भी है ,
जो गुज़र रहा है ,
वक्त है शायद ... ,
मगर ,
इस हर दम दौड़ती ,
तेज़ रफ़्तार ज़िन्दगी में ,
वक्त के लगातार
बिखरते - गुज़रते जाने के बावजूद ,
कुछ और भी है ,
जो ,
मन के ही आस - पास कहीं ,
ठहर सा गया है ,
तुम्हारी याद है शायद ... !
2 टिप्पणियां:
मन के ही आस - पास कहीं ,
ठहर सा गया है ,
तुम्हारी याद है शायद ... !
कितना भावमय लिखा है. एहसास की यह कविता तो मन को छू गयी.
बहुत ही खूबसूरत एहसास के साथ लिखी गयी रचना....बहुत सुन्दर.आभार
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