मंगलवार, 31 मार्च 2020

सकारात्मक ऊर्जा और उत्कट जिजीविषा से साक्षात्कार !

जानी - मानी लेखिका और रंगकर्मी श्रीमती विभा रानी के जन्मदिन पर कवयित्री सरोज सिंह ने अपनी फ़ेसबुक वाल पर उनके लिए यह post लिखी. उनकी अनुमति से इसे 'स्वयंसिद्धा' के मंच से शेयर कर रही हूँ. आप भी पढ़ें.

तुम्हारे माथे पे वो महज़ बिंदी नहीं बल्कि प्रतिष्ठित है सूर्य जिसकी चमक से और भी दमक उठता है तुम्हारा ओजमय स्वरुप, गाँव के आँगन ओसारे में जहाँ पुरखिनों के गीत व सोहर गुलज़ार थे कभी, जिन्हें कागज़ दवात नसीब न हुए दब गए उनके राग आँगन के लेपन में सिल दिए गए कई विरह गीत चउपता के पेवन में, कई तो झउन्स गए चुहानी में, ठीक उनके अरमानो की तरह. आज के दौर में सहल नहीं था उनके गीतों को खोजकर सहेज पाना तुम उन पुरखिनों की आवाज़ बन गयी लोक की बिसरी गाथाओं को समेटा ताकि लोक का राग,रंग,रस बचा रहे अज़ल तक तभी तो........ माटी की सोंधी गंध आती है तुमसे कंक्रीट होती माटी को उर्वर बनाने में तुमने कोई कसर नहीं रख छोड़ी है. अरे तुमने तो यमराज को भी चुनौती दे डाली मौत के भय पर विजय प्रेरणा देती है हम सभी को. तुमसे मिलकर लगता है कि ऊर्जा की गंगा में डुबकी लगा ली हो हर क्षण कुछ नया कुछ बेहतर कर गुजरने का जूनून कर देता है. तुम्हारा कद और ऊँचा. मासूम बच्चों सी तुम्हारी हंसी उम्र की रेत घड़ी को देती है पलट....बुढ़ापे को बेझिझक कह देती हो 'चल परे हट .......'मेरी दिल से यही आरज़ू है के यूँ ही तुम सदा रहो जवां खुशमिजज़ी रहे रवां रवां !
या मैं यूँ कहूँ कि सखी विभा से मिलना महज़ महफ़िल से मिलना ही नहीं बल्कि सकारात्मक ऊर्जा और उत्कट जिजीविषा से साक्षात्कार करना है । मेरी उनसे पहली मुलाकात २०१७ में दिल्ली अवितोको चैप्टर की कवि गोष्ठी में हुई थी ।उनसे मिलकर ये अहसास ही नहीं हुआ कि पहली बार मिल रही हूँ । इतनी सहज,सरल स्नेह से परिपूर्ण हैं कि कोई भी उनसे मिलकर प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता । यह मेरे लिए सौभाग्य की बात थी कि रूम थियेटर अवितोको से जुड़ने का अवसर मिला जिसके मार्फ़त सखी विभा जी को और जानने व बहुत कुछ सीखने को मिला । एक अरसे से मेरी जो एक खोज थी कि समाज के लिए निस्वार्थ भाव से सकारात्मक रूप से जमीनी तौर पर कुछ अलग कुछ ख़ास कर पाऊं वो खोज अवितोको के हवाले से पूरी हुई । उनका व्यक्तित्व ,परिधान ,व्यवहार, अभिनय उनकी कला एवं भाषा किस-किस की चर्चा करूँ ? इन सभी गुणों में पारंगत उन्हें विशिष्ट से अति विशिष्ट बनाती हैं ।
उनकी " समरथ~CAN " 'सेलेब्रेटिंग कैंसर' सीरीज से गुजरते हुए यह आभास होता है कि रेडियशन से झुलसती देह से कैंसर को मात देते हुए जीवन में सौंदर्य कैसे रचा जा सकता है।
ऐसी जिंदादिली पर किसको न रश्क आ जाए । मारक मर्ज़ व उम्र को ताक पर रख कर इन्होने जितना हुनर और हौसला पाया है मैं समझती हूँ कि मैं उसका 10% भी पा लूं तो बहुत है । ऐसी सखी के लिए दिल से यही नारा निकलता है "सखी जिंदाबाद" !!! हे सखी जन्मदिन तहरा खूब खूब मुबारक हो ।

जिनगी के कुल दुआ तहरा नावे
तू सलामत रहs क़यामत तक
अऊर क़यामत कब्बो ना आवे
सांच हो जाव सब आरजु तमन्ना अउर ख्वाब
चमकत रहे तहरा चेहरा पे नूर के आफताब
दुःख के परछाई भी कब्बो छूये ना पावे
तू सलामत रहs क़यामत तक अऊर क़यामत कब्बो ना आवे।।।

प्रस्तुति - सरोज सिंह (रचनाकार)

शुक्रवार, 27 मार्च 2020

बहुत समृद्ध है हमारा "स्त्री रंगमंच" !


नाट्य लेखिका, सशक्त  अभिनेत्री और रंगकर्म के माध्यम से पूरे देश में एक अलग ही तरह की क्रांति लाने वाली सामाजिक कार्यकर्ता  विभा रानी को कौन नहीं जानता ? विभा जी ने  मैथिली भाषा के तीन साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेताओं हरिमोहन झा, प्रभास कुमार चौधरी और लिली रे की छह किताबों का मैथिली से हिंदी में अनुवाद किया है। साथ ही हिंदी रंगमंच को 'मैं कृष्णा कृष्ण की', 'एक नई मेनका', 'भिखारिन' के अलावा 'आओ तनिक प्रेम करें', 'दूसरा आदमी-दूसरी औरत', 'अगले जन्म  मोहे बिटिया न कीजो' और 'प्रेग्नेंट फादर' जैसे मौलिक पुरस्कृत नाटक देकर एक कीर्तिमान स्थापित किया है. 



विभा दीदी को जितना मैं जानती हूँ, उनके काम और समग्र व्यक्तित्व पर पूरी की पूरी एक किताब लिखी जा सकती है लेकिन उनके जिस एक अभियान ने मुझे मन मस्तिष्क से लेकर आत्मा की गहराइयों तक प्रेरित  किया था, वह था विभिन्न जेलों में कैदियों के बीच जाकर  रंगकर्म के माध्यम से उनका मानसिक पुनर्वास करना, उन्हें अवसाद और प्रायश्चित से भरी गहरी पीड़ा से मुक्ति दिलाने का प्रयास करना. एक महिला रंगकर्मी होने के नाते यह निश्चित रूप से आसान नहीं था लेकिन विभा दी आसान कामों को हाथ में लेती ही नहीं. वह स्वभाव से ही चुनौती पसंद हैं.  ब्रेस्ट कैंसर जैसे भयानक राक्षस से लड़ने और इस मारक लड़ाई में जीतने वाली हमारी यह जीवट योद्धा कोरोनावायरस के चलते लागू हुए 'क्वॉरेंटाइन' समय में भी अपनी रचनात्मकता के माध्यम से लोगों में प्रेरणा का प्रसार करने में लगी हैं. 

वर्षो पूर्व ही फिल्म 'धधक' और टेली फिल्म 'चिट्ठी' में पर्दे पर अभिनय क्षमता का लोहा मनवाने वाली विभा रानी ने वर्ष 2019 में रिलीज़ हुई सैफ़  अली खान स्टारर फ़िल्म 'लाल कप्तान' में  सबसे ज्यादा चर्चित होने वाला किरदार अदा किया या यूँ कहें कि उनकी अभिनय से ही वो किरदार इतना चर्चित हो गया. 

फ़िलहाल उनका यूट्यूब चैनल "बोले विभा" बहुत चर्चित हो रहा है जिसमें वह नित नए विषय के साथ दर्शकों से रूबरू होती हैं उनमें जीवन के प्रति राग-अनुराग और प्यार भरती हैं. आशा और नए सपनों की किरण जगाती हैं.


अनेकानेक नाटक लिखने वाली, अनेकानेक किरदार जीने वाली और एकल महिला नाटकों को सबसे ज्यादा प्रसारित करने वाली देश की वरिष्ठ रंगकर्मी विभा रानी के सबसे बेहतरीन योगदानों में से एक है -  "एक बेहतर विश्व - कल के लिए - अवितोको रूम थिएटर" अभियान, जिसके अंतर्गत उन्होंने रूम थिएटर की परिकल्पना को एक नया आयाम दिया है. नाटक करने वालों के स्वप्न को नया पंख, नया आकाश दिया है. नाटक कहीं भी हो सकता है. सीमित से सीमित संसाधन में 'अभिनय' के साथ रंगकर्म किया जा सकता है. अगर दर्शक नाटक तक ना पहुंचें तो नाटकों को दर्शक तक पहुंचाया जा सकता है. इस असंभव को संभव बनाने में विभा रानी का बहुत बड़ा योगदान है. मायानगरी मुंबई में आज रूम थिएटर और छोटे कक्षों में किए जाने वाले तमाम रचनात्मक कार्यक्रमों का जो सिलसिला चल रहा है, उसकी शुरुआत करने का श्रेय विभा रानी को जाता है , यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी.

विगत चार दशकों से निरंतर रंगकर्म और लेखन में संलग्न  और पिछले साल ही कार्यालयीय सेवा से निवृत हो कर पूर्ण रूप से रचनाकर्म को समर्पित हो जाने वाली विभा रानी अभी संतुष्ट नहीं हुई हैं.  उनका मानना है कि मंज़िल अभी दूर है. उनके ही शब्दों में "महिला रंगमंच पर अभी भी बहुत काम करना बाकी है. हर भाषा, हर समाज में अभी भी ऐसे लोग हैं जो रंगमंच को सही नहीं मानते. सम्माननीय नहीं मानते इसलिए उन जगहों पर अपने घर की बहू बेटियों, बीवियों का काम करना पसंद नहीं करते. महिला नाट्य लेखन हो रहा है लेकिन मुख्य रूप से उन्हीं के द्वारा जो नाटक से जुड़े हुए हैं. आज भी नाट्य लेखन को साहित्य का अंक हिंदी में कम से कम नहीं माना जा रहा है. इस कारण भी महिलाएं नाट्य लेखन में कम उत्सुक होती हैं नाटक लिखने के बजाय वह उपन्यास लिखना पसंद करती हैं क्योंकि इसकी मांग अधिक है." 
उम्मीद पर दुनिया कायम है और प्रयासों से ही नए निर्माण होते आये हैं. इस दृष्टि से प्रख्यात 'महिला' रंगकर्मी के रूप में विभा रानी जी का यह सतत प्रयास रंगकर्म में रत असंख्य महिला कर्मियों के लिए दिशा निर्देशक की भूमिका निभाएगा, इसमें कोई संदेह नहीं.

प्रस्तुति - प्रतिमा सिन्हा (लेखिका)

गुरुवार, 26 मार्च 2020

"पढ़ी-लिखी जागरूक स्त्री ही सशक्त है।" - ममता कालिया

अपने उपन्यास 'दुक्खम सुक्खम' के लिए प्रतिष्ठित 'व्यास सम्मान' से अलंकृत सुविख्यात, सुप्रतिष्ठित कथाकार एवं मेरी प्रिय रचनाकार आदरणीया श्रीमती ममता कालिया जी का लेखन संसार बेहद विशाल है.
कुछ-कुछ अनंत आकाश सा.....



मैं और मेरे जैसी जाने कितनी ही महिला रचनाकारों ने उनको अपना आदर्श माना होगा, यह वो ख़ुद भी नहीं जानती होंगी. अपने जीवन की पहली लम्बी कहानी जो मैंने पढ़ी थी वो उनकी ही लिखी हुई थी. एक पूरा युग बिता कर पिछले साल दिसम्बर में उनसे मुलाक़ात हुई. उन्हें बिलकुल वैसा ही पाया जैसा सोचा था. ममतामयी, अपनत्व से भरी हुई. जब उनसे संकोच के साथ "स्वयंसिद्धा" हेतु उनके कुछ शब्द माँगे तो उन्होंने तुरन्त मेरे संकोच का मान रखते हुए अपनी सहमति दे दी.  
'स्वयंसिद्धा' ने उनसे तीन बातें जाननी चाही थीं.
*आपके विचार से सशक्त नारी कौन है
*आप स्वयं अपने आप पर किस एक बात के लिए गौरव महसूस करती हैं
*आपके जीवन का कोई एक ऐसा क्षण जब आपने अपने  या किसी दूसरे के हित के लिएसचमुच शक्ति प्रयोग किया हो।

पढ़िए कि मेरी प्रिय रचनाकार ने बिना किसी बनावट और लागलपेट के क्या कहा....... 



"कितनी अच्छी बात है कि इक्कीसवीं सदी में स्त्री को अपनी शक्ति दिखाने के लिए तीर कमान लेकर नहीं निकलना पड़ता।  बिना इतिहास में जाये, यह कहना पर्याप्त होगा कि आज पढ़ी-लिखी जागरूक स्त्री ही सशक्त है। सबसे ज़रूरी है कि वह अपने को शिक्षित करे। उसके बाद अपने किसी रोजगार से लगे। दूसरी बात, वह अपनी निर्णय क्षमता का विकास करे। कोशिश करे कि कार्यक्षेत्र में किसी हिंसा की चपेट में ना आए। इसका अर्थ यह कतई नहीं कि वह स्वयं शोषक की भूमिका में आ जाए। उसके अंदर स्त्रियोचित सौम्यता, सरलता और लचीलापन भी बना रहे अन्यथा परिवार नष्ट हो जाएगा।
"गर्व नहीं संतोष कर सकती हूँ कि अनेक मुसीबतों, बेवकूफियों और बेइज्जतियों से अपने घर परिवार को बचाकर एक रचनात्मक जीवन जिया। बच्चों का कैरियर बन गया।रवींद्र भी मनचाहा लिख पाए,मनमाना जी पाए। मैंने भी किसी भी हाल में लिखना नहीं छोड़ा। परिवार को दीनता और पलायन, हीनता और पराजय से बचा सकी, इसका ही संतोष या गर्व समझ लो।" 
*
"छोटे-छोटे युद्ध लड़े और जीते। कॉलेज को कच्चे से पक्का कराने का संघर्ष 17 साल चला। एक लद्धड़ संस्था को पटरी पर लाने में जीवन की आधी ताकत खर्च हुई। संतोष यह कि जीत हासिल हुई। अपना लेखन तो किया ही बहुत सी लड़कियों को साहित्य में रुचि देने का काम किया। रवि के दिवंगत होने के बाद अकेले रहने का पराक्रम तो चल ही रहा है अभी। यहाँ बसने के साथ रचने का भी सुख है।"

- ममता कालिया

सोमवार, 23 मार्च 2020

सलाम सीमा कुशवाहा !

ये हमारी नयी हीरो हैं.

अगर आप नहीं होतीं तो हमारी निर्भया को इंसाफ़ शायद ही मिल पाता. बिना एक भी रूपये फ़ीस लिए जिस तरह से आपने आशा देवी का केस लड़ा वो बेमिसाल उदाहरण है. आप जैसे वकीलों ने ही न्याय व्यवस्था की नींव थाम रखी है.

हम आपको सैल्यूट करते हैं एडवोकेट सीमा कुशवाहा.

अवसाद के भय से जूझता मध्यमवर्ग !

शायद आपको पता हो कि भारतीय समाज में पाया जाता है एक 'मध्यमवर्गीय तबका'। उच्च वर्ग की तरह  कई पीढ़ियों के जीवनयापन की चिंताओं से मुक...