तो मैं सुनती हूँ...,
जो सुनती हूँ ,
वही गुनती हूँ ...,
गुन कर शब्द चुनती हूँ ...,
गुन कर शब्द चुनती हूँ ...,
उनसे चाँद -तारों के ख्वाब बुनती हूँ ...
और हौले से काग़ज़ पर उतर देती हूँ ...,
हाँ...
बस ऐसे ही तो लिखती हूँ मैं ,
तो अब ,
जब इतने दिनों से ,
तुमने मुझसे कुछ कहा ही नही ,
फिर तुम ही बताओ ,
मैं लिखूँ कैसे ... !
प्रतिमा ... !
6 टिप्पणियां:
सच में कहना मुश्किल है जब कोई इंस्पिरेशन न हो ............ अच्छा लिखा है ........
speachless ji..
मन के भावों और प्रेमानुभूति में डूबी शिकायत को सुंदर तरीके से अभिव्यक्त किया है आपने।
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सच में बहुत ही सुन्दर रचना दीदी !!!!!!!
आपकी ये रचना काबिले तारीफ है!
सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।
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