मंगलवार, 13 अक्तूबर 2009

बताओ मुझे ...!

तुम मुझसे कहते हो ,
तो मैं सुनती हूँ...,
जो सुनती हूँ ,
वही गुनती हूँ ...,
गुन कर शब्द चुनती हूँ ...,
उनसे चाँद -तारों के ख्वाब बुनती हूँ ...
और हौले से काग़ज़ पर उतर देती हूँ ...,
हाँ...
बस ऐसे ही तो लिखती हूँ मैं ,
तो अब ,
जब इतने दिनों से ,
तुमने मुझसे कुछ कहा ही नही ,
फिर तुम ही बताओ ,
मैं लिखूँ कैसे ... !

प्रतिमा ... !

6 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सच में कहना मुश्किल है जब कोई इंस्पिरेशन न हो ............ अच्छा लिखा है ........

vijay kumar sappatti ने कहा…

speachless ji..

Science Bloggers Association ने कहा…

मन के भावों और प्रेमानुभूति में डूबी शिकायत को सुंदर तरीके से अभिव्यक्त किया है आपने।
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Chandan Kumar Jha ने कहा…

सच में बहुत ही सुन्दर रचना दीदी !!!!!!!

संजय भास्‍कर ने कहा…

आपकी ये रचना काबिले तारीफ है!

संजय भास्‍कर ने कहा…

सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।

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