चलो बस हो चुका मिलना , न हम ख़ाली - न तुम ख़ाली !
बड़ी अजब सी कैफियत होती है , जब मन में कहने को बहुत कुछ हो लेकिन कहने के लिए न अल्फाज़ हों , न वक्त की मोहलत । और तो और सुनने वालो को भी सुनने की फ़ुरसत न हो । ऐसे में अचानक ही महसूस होता है जैसे सब कुछ बेकार , बेवजह , बेसबब है। ये ज़िंदगी , ये दुनिया , ये लोग , सब कुछ ... । एक शैतान अँधेरा , जाने किधर से आता है और सारे वजूद को अपनी गिरफ्त में ले लेता है । कुछ यूँ ही सी रही , मन की हालत पिछले दिनों ... । दुनियावी मसरूफियात में उलझा मशीन बना ये जिस्म और इसके भीतर किसी और ही सतह पर पता नहीं क्या खोजता , तलाशता, भटकता , छटपटाता मन ... । लेकिन शुक्र है । अंधेरे की शैतानी जब हद से बढ़ जाती है , रौशनी , किसी न किसी दरार से मेरे भीतर आने का रास्ता बना ही लेती है । तो ...... एक बार फिर मन रोशन है । मैं फिर अपनी धुन में चल पडी हूँ। पसार लिए हैं फिर से पंख , अपने आकाश में परवाज़ भरने के लिए ... !
2 टिप्पणियां:
बहुत ही सुंदर लिखा आपने ...लिखती रहें
Her andhere ki baad roushni aati है .......... aur roshni hi raasta dikhati है .......... bahoot achha likha है ......
एक टिप्पणी भेजें