रविवार, 23 अगस्त 2009

(17) उलझन...!


तुम मेरे कितने करीब हो ...!
इतने ,
कि हाथ बढ़ा कर छूं लूं तुम्हें ,
आवाज़ देकर बुला लूं तुम्हें ,
नज़रें उठा कर देख लूं तुम्हें ,
तुम्हारे जिस्म की खुशबू से ,
पहचान लूं तुम्हें ,
फिर भी कितनी दूर ...,
कि
मैं तुम्हें छू नही पाती ,
तुम्हें बुला नही पाती ,
तुम्हें देख नही पाती ,
ये
चंद क़दमों का फासला
जाने क्यूं ,
सदियों में भी तय नहीं होता ... !


''मैं '' प्रतिमा ........ !

2 टिप्‍पणियां:

Chandan Kumar Jha ने कहा…

बहुत ही भावुक रचना.....शब्दों को बहुत हीं सुन्दर पिरोया है आपने......बेहतरीन. आभार.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

SACH MEIN KABHI KABHI INSAAN ITNA MAJBOOR HO JAATA HAI ........ AAPKI LAJAWAAB RACHNA HAI .......

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