इतने ,
कि हाथ बढ़ा कर छूं लूं तुम्हें ,
आवाज़ देकर बुला लूं तुम्हें ,
नज़रें उठा कर देख लूं तुम्हें ,
तुम्हारे जिस्म की खुशबू से ,
पहचान लूं तुम्हें ,
फिर भी कितनी दूर ...,
कि
मैं तुम्हें छू नही पाती ,
तुम्हें बुला नही पाती ,
तुम्हें देख नही पाती ,
ये
चंद क़दमों का फासला
जाने क्यूं ,
सदियों में भी तय नहीं होता ... !
''मैं '' प्रतिमा ........ !
2 टिप्पणियां:
बहुत ही भावुक रचना.....शब्दों को बहुत हीं सुन्दर पिरोया है आपने......बेहतरीन. आभार.
SACH MEIN KABHI KABHI INSAAN ITNA MAJBOOR HO JAATA HAI ........ AAPKI LAJAWAAB RACHNA HAI .......
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