शनिवार, 29 अगस्त 2009

(18) आँखें ... !


चुप भी रहूं तो आँखें बोलती हैं ,
न जाने कितने पोशीदा राज़ खोलती हैं ,
दिल का हाल चेहरे पर लाती हैं
और दुनियां भर को बताती हैं ,
यूं तो मैं परेशान नहीं ,
क्योंकि इस बात से अनजान नहीं ,
कि इस बेशुमार भीड़ में
मेरी आंखों की भाषा जानने वाला
कोई भी इंसान नहीं ,
हां ...
डर है तो सिर्फ़ तुमसे ,
क्योंकि तुम ही हो ,
जो , मेरा चेहरा पढ़ लेते हो
और
सुन लेते हो ,वो सब भी ,
जो मेरी आँखें बोलती हैं ... !
''मैं'' प्रतिमा............

7 टिप्‍पणियां:

Chandan Kumar Jha ने कहा…

आँखो के माध्यम से बहुत कुछ कहा आपने. सुन्दर रचना.

Unknown ने कहा…

jo aankho ki bhaashaa samajh le , wo to jeevan me koi khaas hi hoga. aankho ki tarah bolti rachana ke liye badhayee...

keep writing....

M VERMA ने कहा…

डर है तो सिर्फ़ तुमसे ,
क्योंकि तुम ही हो ,
जो , मेरा चेहरा पढ़ लेते हो
बहुत सुन्दर भाव. आँखो के व्यक्तव्य दिल से पढी तो जा रही है.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

KYAA LAJAWAAB BHAAV HAIUN AUR UTNI HI SUNDAR ABHIVYAKTI HAI ......... JAJBAATON KO BAAKHOOBI UTAARA HAI IS RACHNA MEIN ......

दिगम्बर नासवा ने कहा…

आपको ढ़ेरो बधाईयां...
दिन और शाम से कोई वास्ता नहीं मेरा,
रात का अलसाया आखिरी पहर हूँ मैं
लाजवाब ग़ज़ल है आपकी ............... हर शेर कमाल का है .......

दर्पण साह ने कहा…

यूं तो मैं परेशान नहीं ,
क्योंकि इस बात से अनजान नहीं ,
कि इस बेशुमार भीड़ में
मेरी आंखों की भाषा जानने वाला
कोई भी इंसान नहीं ,

badhiya bhavabhivyakti...

yahi main bhi sochta hoon...


Matlab jo samjhe mere sandesh ka is desh main hai kya koi mere desh ka?

vijay kumar sappatti ने कहा…

kavita me aapne shabdo ke zariye se man ko bakhubi darshaya hai ..


vijay

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