
" मौत का एक दिन मुअईन है " ये लिखते समय यक़ीनन ग़ालिब भी इस हकीकत से वाकिफ़ रहे होगें कि ये मामला दरअसल एक दिन नहीं ,बल्कि महज एक पल का है । बस ...... एक ...... पल ..... ! या फिर उसका भी हजारवां हिस्सा ..... , बस इतना सा ही फ़ासला होता है ज़िन्दगी और मौत के बीच । इतनी ही देर लगती है हैं से थे होने में । लिखना और भी बहुत कुछ चाहती हूँ मगर पता है , ये वक्त फ़लसफ़ा झाड़ने का नहीं सख्त अफ़सोस करने का है । विश्व की महाशक्तियों में शुमार होने के लिए कमर कसे हमारे देश में एक विख्यात उड्डयन कंपनी का विमान रनवे पर सुरक्षित उतरने में नाकाम रहा और १५८ लोग रात की नींद टूटने से पहले ही हमेशा के लिए मौत की गोद में सो गए । एक ऐसा भीषण हादसा , जिसने हर सुनने वाले का दिल दहला दिया । गलती किसकी थी , चूक कहाँ हुयी ,कारण क्या थे , ये सब जानने के लिए जाँच एजेंसियों को काम मिल चुकाहै । फ़िलहाल सारा दोष विदेशी पायलेट के सिर मढ़ा जा रहा है । ये आसान भी है क्योंकि वो बेचारा तो अब अपनी सफाई देने आने से रहा । लेकिन सौ बात कि एक बात ये कि जो चिराग उजाला होने के साथ ही बुझ गए उनमे अब फिर कभी रौशनी नहीं आयेगी ।
1 टिप्पणी:
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