शुक्रवार, 7 मई 2010

कुदरत तुझे सलाम !

सात मई की सुबह एक अलग ही अनुभव ले कर आयीमैं सोच रही थी कि ये हंगामा सिर्फ मेरे शहर में ही बरपा मगर अगले दिन की ख़बरों से मालूम हुआ कि पूरा पूर्वांचल और हमारा पड़ोसी बिहार भी इसकी चपेट या कहें कि लपेट में थासुबह साढ़े छः बजे उठी तो सब ठीक - ठाक थारोज़ की तरह ... । लेकिन सात बजते - बजते '' दिन में रात हो गयी '' और फिर स्क्वाल (एक प्रकार का तूफ़ान ) नाम के बिन बुलाये अतिथि महोदय कुछ इस अंदाज़ में धमके कि मज़ा गयाबाद में मौसम वैज्ञानिकों के हवाले से मालूम चला कि ये अतिथि महोदय दरअसल बिन बुलाये नहीं , बाकायदा निमंत्रित थेये बात दूसरी है कि ये निमंत्रण हमने नहीं , पिछले कुछ दिनों से लगातार बढ रही गर्मी और नमी के चलते खुद कुदरत का दिया हुआ थातभी तो ये इतने बिंदास तरीके से आये , गरजे, बरसे और बस मिनटों में हंगामा मचा कर गएसच कहती हूँ बहुत अद्भुत नज़ारा थातेज़ हवाएं , मूसलाधार बारिश ,तूफ़ान में बौराए झूम कर दोहरे हो रहे पेड़ , हवा के तूफानी वेग से उखड़ कर यहाँ - वहाँ उड़ रहे - गिर रहे लोहे के बड़े - बड़े होर्डिंग्स , बिजली के खभे और पेड़ों के मोटे - मोटे तनेये भी इत्तेफ़ाक था कि मैं ठीक उसी वक्त सुबह की ड्यूटी पर जाने के लिए रास्ते में थी शायद इसीलिए इस नज़ारे को और भी करीब से महसूस कर सकीलगता था कि किसी भी वक्त कोई पेड़ या होर्डिंग उखड़ कर गाड़ी पर गिरेगाईश्वर की कृपा से मैं तो सुरक्षित गंतव्य तक पहुँच गयी लेकिन इस तूफ़ान ने कितना कहर ढाया ये तो अगले दिन के अखबार से पता चलाउस बर्बादी का ब्यौरेवार वर्णन करना नहीं चाहती लेकिन ये ज़रूर सोच रही हूँ कि ............ सच कितनी ताकत होती है कुदरत में और जब वो ताकत जगती है तो हमारी सारी शक्ति , सारी ताकत पनाह मांगने लगती हैफिर भी कितने दुस्साहसी होते हैं हम इंसान भी , बार - बार कुदरत को छेड़ना नहीं छोड़तेज़रा सोचिये, इस छेड़- छाड़ से कुपित हो कर जिस दिन ये कुदरत अपने प्रकोप का तीसरा नेत्र खोल देगी, उस दिन हमारा क्या होगा ?

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