केलेंडर बता रहे हैं कि नौ मई को मदर्स डे है । माँ का दिन ... । अपने बच्चे के ही लिए जीने वाली , उसकी ही आँखों से सोने - जागने वाली , उसके ही सपनों पर कुर्बान होने वाली माँ को एक प्यार भरा आभार देने का दिन ... । जिस माँ से बस लेते ही लेते रहते हैं , उस माँ को एक नन्हा मगर दुलार भरा उपहार देने का दिन .... । सब अपनी -अपनी माँ को उपहार देने और उसे खुश करने की योजना बनाने में व्यस्त हैं और मैं ...........................
मैं सोच रही हूँ कि क्या दूँ माँ को , जो उस तक पँहुच जाये क्योकि मेरी माँ तो अब वहाँ है , जहां शायद मेरी आवाज़ भी नहीं पँहुच सकती । एक अजब सा खालीपन महसूस कर रही हूँ जिसे बाँट पाना मुमकिन ही नहीं है । जब मैं छोटी थी तब ऐसे पर्व नहीं होते थे । अपनी माँ से बेपनाह मोहब्बत करने के बावजूद मैं उससे कभी नहीं कह सकी कि माँ मैं आपको बहुत प्यार करती हूँ । मैंने उसे कभी ये भी नहीं बताया कि उसके नहीं होने पर मेरी जिंदगी किस कदर अधूरी और ख़ाली हो जायेगी । मैंने अपनी माँ को कभी आभार भरा उपहार या सुन्दर संदेशों वाला कार्ड नहीं दिया । शायद हमेशा यही सोचा कि माँ तो सब जानती ही है , अगर नहीं जानती तो उसे जानना चाहिए ,आखिर वो माँ जो है । पता नहीं, माँ के रहते मैं कभी ये क्यों नहीं सोच पायी कि प्यार का एहसास कितना भी रूहानी सही मगर कभी - कभी शब्दों के माध्यम से उसकी अभिव्यक्ति भी अहमियत रखती है । कोई हमारे लिए कितना ज़रूरी है ये बताना कभी - कभी उसकी उम्र बढाने जैसा हो सकता है । मेरी माँ मेरे लिए कभी खुद से अलग इकाई नहीं रही । वो पहले भी मुझ में थी , आज भी है और तब तक रहेगी जब तक उसकी कोख में आकार लेने वाला मेरा शरीर ख़त्म नहीं हो जाता । लेकिन आज सोच रही हूँ तो लगता है कि हाँ मुझसे भूल हो गयी । मुझे माँ से कहना चाहिए था, वो सब कुछ, जो मैं कहना चाहती थी उससे । मुझे उसे बताना चाहिए था कि चाहे उसने मुझे अपने भीतर सिरजा हो , मगर मैं उसे अपने भीतर महसूस करती हूँ । मुझे माँ से कहना चाहिए था कि मेरे लिए सारी दुनिया में उससे ज्यादाख़ास, प्यारा और कीमती कोई न था, न होगा। मुझे माँ को बता देना चाहिए था कि ऊपर से चाहे मैं कितनी भी निश्चिन्त , निर्लिप्त दिखूं , लेकिन सच ये है कि उसके हर सुख - दुःख से मैं भीतर तक टूटती - जुड़ती, बनती - बिगड़ती हूँ । मुझे माँ को ये भरोसा भी ज़रूर दिलाना चाहिए था कि हालात ने ऊपर से भले ही मेरे रास्ते उससे अलग बना दिए हो मगर मेरा हर रास्ता उससे ही हो कर गुज़रता है । जिंदगी चाहे कितने भी रास्ते बदले मगर उसके ही लहू - अस्थि - मज्जा से बनी मैं उससे अलग नहीं होउगीं। हां...... मुझे माँ से ये सब कह देना चाहिए था,मगर मैंने नहीं कहा और आज ये एहसास मुझे बेतरह तकलीफ़ दे रहा है कि माँ ये सारा सच जाने बिना ही चली गयी । दुनिया की हर माँ को अपने बच्चे से ये सुनने का हक़ है कि वो उसके लिए कितनी ख़ास है और मेरी माँ को उसका ये हक़ नहीं मिल सका । आज दुकानें हृदयस्पर्शी संदेशों वाले कार्डों से सजी हैं मगर मैं चाहूं तो भी उन्हें खरीदकर माँ तक नहीं पहुँचा सकती । मैं गिफ़्ट की दुकानों पर माँ के लिए सजे उपहारों को देखती हूँ और उदास हो जाती हूँ । दिख रही चीज़ें अचानक धुंधला जाती हैं और एहसास होता है कि कुछ आंसू सा आ कर अटक गया है ।
मैं सोच रही हूँ कि क्या दूँ माँ को , जो उस तक पँहुच जाये क्योकि मेरी माँ तो अब वहाँ है , जहां शायद मेरी आवाज़ भी नहीं पँहुच सकती । एक अजब सा खालीपन महसूस कर रही हूँ जिसे बाँट पाना मुमकिन ही नहीं है । जब मैं छोटी थी तब ऐसे पर्व नहीं होते थे । अपनी माँ से बेपनाह मोहब्बत करने के बावजूद मैं उससे कभी नहीं कह सकी कि माँ मैं आपको बहुत प्यार करती हूँ । मैंने उसे कभी ये भी नहीं बताया कि उसके नहीं होने पर मेरी जिंदगी किस कदर अधूरी और ख़ाली हो जायेगी । मैंने अपनी माँ को कभी आभार भरा उपहार या सुन्दर संदेशों वाला कार्ड नहीं दिया । शायद हमेशा यही सोचा कि माँ तो सब जानती ही है , अगर नहीं जानती तो उसे जानना चाहिए ,आखिर वो माँ जो है । पता नहीं, माँ के रहते मैं कभी ये क्यों नहीं सोच पायी कि प्यार का एहसास कितना भी रूहानी सही मगर कभी - कभी शब्दों के माध्यम से उसकी अभिव्यक्ति भी अहमियत रखती है । कोई हमारे लिए कितना ज़रूरी है ये बताना कभी - कभी उसकी उम्र बढाने जैसा हो सकता है । मेरी माँ मेरे लिए कभी खुद से अलग इकाई नहीं रही । वो पहले भी मुझ में थी , आज भी है और तब तक रहेगी जब तक उसकी कोख में आकार लेने वाला मेरा शरीर ख़त्म नहीं हो जाता । लेकिन आज सोच रही हूँ तो लगता है कि हाँ मुझसे भूल हो गयी । मुझे माँ से कहना चाहिए था, वो सब कुछ, जो मैं कहना चाहती थी उससे । मुझे उसे बताना चाहिए था कि चाहे उसने मुझे अपने भीतर सिरजा हो , मगर मैं उसे अपने भीतर महसूस करती हूँ । मुझे माँ से कहना चाहिए था कि मेरे लिए सारी दुनिया में उससे ज्यादाख़ास, प्यारा और कीमती कोई न था, न होगा। मुझे माँ को बता देना चाहिए था कि ऊपर से चाहे मैं कितनी भी निश्चिन्त , निर्लिप्त दिखूं , लेकिन सच ये है कि उसके हर सुख - दुःख से मैं भीतर तक टूटती - जुड़ती, बनती - बिगड़ती हूँ । मुझे माँ को ये भरोसा भी ज़रूर दिलाना चाहिए था कि हालात ने ऊपर से भले ही मेरे रास्ते उससे अलग बना दिए हो मगर मेरा हर रास्ता उससे ही हो कर गुज़रता है । जिंदगी चाहे कितने भी रास्ते बदले मगर उसके ही लहू - अस्थि - मज्जा से बनी मैं उससे अलग नहीं होउगीं। हां...... मुझे माँ से ये सब कह देना चाहिए था,मगर मैंने नहीं कहा और आज ये एहसास मुझे बेतरह तकलीफ़ दे रहा है कि माँ ये सारा सच जाने बिना ही चली गयी । दुनिया की हर माँ को अपने बच्चे से ये सुनने का हक़ है कि वो उसके लिए कितनी ख़ास है और मेरी माँ को उसका ये हक़ नहीं मिल सका । आज दुकानें हृदयस्पर्शी संदेशों वाले कार्डों से सजी हैं मगर मैं चाहूं तो भी उन्हें खरीदकर माँ तक नहीं पहुँचा सकती । मैं गिफ़्ट की दुकानों पर माँ के लिए सजे उपहारों को देखती हूँ और उदास हो जाती हूँ । दिख रही चीज़ें अचानक धुंधला जाती हैं और एहसास होता है कि कुछ आंसू सा आ कर अटक गया है ।
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