मंगलवार, 4 जनवरी 2011

आओ जनवरी ... तुम्हारा स्वागत है !

मन तो कुछ विशेष उत्साही नहीं , कोई अलग सा संकल्प भी नहीं लिया है तुम्हारे आगमन के लिये , फिर भी एक परंपरा का निर्वहन ही है कि कहना चाहती हूँ - आओ जनवरी तुम्हारा स्वागत है . चारों ओर पानी के जम जाने की हद तक ठंड पडने के आसार और समाचार हैं. जब नदियाँ जम कर बर्फ़ हो रही हों तो रगों की तह में बहते खून का क्या हाल होता होगा ये सोचने की बात है . शुक्र है हमारे लिये ये सब अभी भी एक समाचार ही है. हम अपने घरों के गर्म कंबलों में सुरक्षित हैं. जब गर्म चाय की चुस्कियाँ लेते हुए  टीवी पर ठंड से मरते लोगों की खबर देखने का विकल्प मौजूद हो तो अपने अनुभव से जीवन के कटु यथार्थ जानने का आग्रह कौन कमअक्ल करना चाहेगा ? सो इस विशेष सुविधा का पात्र होने की तसल्ली ज़ाहिर करने के लिये  भी कहना ज़रूरी है कि - आओ जनवरी तुम्हारा स्वागत है

पीछे मुड कर देखूँ तो याद आता है वो वक्त ,जब तुम्हारे आने की आहट तीन महीने पहले ही कानों में गूँजने लगती थी. फिर शुरू होता था दिल-ओ-जान से अपने अपनों के लिये उपहारों और बधाई पत्र चुनने , तलाशने, खरीदने और भेजने का सिलसिला. हर किसी के लिये अलग भाव, संदेश और संवेदना...!
कोई ऐसा आग्रह भी नही कि पहले कोई हमें दे तभी हम उसे  लौटाएगें. बस  जो अच्छा लगा, दिल के करीब लगा, उसे नववर्ष की शुभकामनायें असीम स्नेह के साथ प्रेषित कर दीं. मन के कई अनकहे भावों और बातों के कह देने का सुन्दर-सुखद अवसर बन जाता था तुम्हारा आगमन. लेकिन जाने क्यों अब ऐसा महसूस नहीं हो रहा.... चाह कर भी नहीं. जो साल बीता उसका स्वागत भी सबने झूम कर ही किया था.जाने कितने सपने, उम्मीदें, दुआएं 
तब भी तो यही सब हुआ था , फिर न जाने क्यों सब बिखरता सा लगा. लगता है, जाते-जाते ये साल दिल के कई कीमती अहसासात और यकीन अपने साथ ही लेता गया कभी न लौटाने के लिये.   इसीलिये मन कुछ खाली -खाली सा हो गया है और इस खालीपन के साथ अगर तुम्हारा स्वागत मैं पूरे उत्साह के साथ न कर सकूँ तो इसमें दोष भी क्या ?

फिर भी सच कहूँ... उत्साह न सही , लेकिन मन की पूरी ईमानदारी के साथ  मैं तुम्हारे आगमन पर खुश होना चाहती हूँ क्योंकि लाख उदासी का कुहासा क्यों न छाया हो लेकिन मुझे पता है कि इस कुहासे को काटने वाला सूरज अगर कहीं छुपा हो सकता है तो वो तुम्हारा दामन ही है.  तुम ही हो जिसकी आगोश में कुछ अच्छा होने की उम्मीद अभी बाकी है...... उम्मीद......! 

हाँ , अब याद आया , यही उम्मीद ही तो है जिसे गुज़रा साल अपने साथ नहीं ले जा सका.  यही उम्मीद है जिसे पीछे गुज़रा सारा वक्त अपने साथ नहीं ले जा सका. यकीन गया लेकिन उम्मीद रह गयी बंद मुट्ठी में छुपे मोतियों सी मेरे पास.

... और अब यही उम्मीद कह रही है कि जब तक वो है तब तक ज़िन्दगी है और जब तक ज़िन्दगी है -तब तक सफ़र है...,मंज़िलें हैं...,मुश्किलें हैं...,आँसू हैं...,सपने हैं...,अपने हैं... और जब तक अपने हैं तब तक यकीन भी बनाये रखना होगा - खुद पर , दोस्ती पर, ज़िन्दगी पर !

तो उम्मीद का हौसला कायम रखते हुए, आने वाले वक्त के इंसाफ़ पर अकीदा जताते हुए और तुम्हें उस आगत की आहट मानते हुए पूरी ईमानदारी से कहना चाहती हूँ कि
आओ जनवरी तुम्हारा स्वागत है !

   

1 टिप्पणी:

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

लगता है जैसे मेरे मन की ही बात कह दी.

नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं.

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