शुक्रवार, 8 अक्तूबर 2010

मैं और ताजमहल...

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बीते रविवार मैं ताजमहल के साथ थी. सच..., वहाँ पहुँच कर किसी के साथ होने का सा ही एहसास होता है.तेज़-तीखी धूप के बावजूद ताज के सामने मौजूद होने की अनुभूति किसी ठंडक भरी राहत से कम नहीं थी. ये पहली बार नही था कि मैं वहाँ थी पहले भी कई दफ़ा दुनिया की इस नायाब खूबसूरती को बहुत करीब से देखने और महसूस करने का मौका मिला है. हर बार लगा है कि इसे तो बार-बार देखा जाय तो कम है और हर बार जब-जब ताज के सामने पहुँची हूँ , जेहन में गूँजता ये शे’र बेसाख्ता ज़ुबाँ पर आ गया है-



एक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताजमहल; 
सारी दुनिया को मोहब्बत की निशानी दी है.

एक खूबसूरत , रूहानी एहसास है ताज को देखना. अगर मुमकिन हो तो एक बार इस एहसास को ज़रूर जीना चाहिये...और हाँ , जब भी जाएं, कुछ वक्त लेकर जाएं ,ताकि  इस बेशकीमती शाहकार के ठंडे साये तले सुकून के चंद लम्हे गुज़ारे जा सकें !

6 टिप्‍पणियां:

vandana gupta ने कहा…

सही कह रही हैं -----दो बार जा चुकी हूँ।

Darshan Lal Baweja ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद जी|
आओं देखें आज क्यों और कैसे ?विज्ञान मे क्या हलचल है
आओं देखें आज विज्ञान गतिविधियाँ मे क्या हलचल है

शरद कोकास ने कहा…

हम लोग जब छात्र थे तब पहली बार ताजमहल देखने गए थे और सर्वसम्मति से यह कहा गया था कि यार ...ताजमहल दूर से ज़्यादा सुन्दर दिखाई देता है

संजय कुमार चौरसिया ने कहा…

baar baar jane ki iksha hoti hai
main bhi do baar jaa chuka hoon

purani yaad taja ho gayi
dhnyvaad

रंजू भाटिया ने कहा…

ताजमहल जैसा कुछ नहीं ....वाकई यह सच है

Parul kanani ने कहा…

misaal hai..:)

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