बात पूरी करने पहले साफ़ कर दूँ कि मुख्य प्रदेश को भारत के नक्शे पर खोजने की कोशिश मत कीजियेगा . ये प्रदेश आपको आमिर खान प्रोडक्शन की हालिया फ़िल्म पीपली लाइव में मिलेगा और अगर आपने ये फ़िल्म देखी है तो निश्चित रूप से आपको मुख्यमंत्री महोदय भी याद होगें जो नत्था की आत्महत्या के एलान के बाद नत्था और अपनी इमेज दोनों को बचाने के द्वन्द्व में फँसे रहते हैं. पर्दे पर इस किरदार को दमदार तरीके से निभाने के लिये आमिर खान प्रोडक्शन ने जिस कलाकार को चुना , वो थे रंगमंच के सशक्त अभिनेता और भा० ना० अ० , लखनऊ-रंगमंडल के प्रमुख श्री जुगल किशोर जी. पिछले दिनों एड्स पर आधारित त्रिपुरारी शर्मा द्वारा लिखित व निर्देशित नाटक शिफ़ा की टीम के साथ जुगल जी बनारस में थे . स्थानीय समन्वय हमारी संस्था सेतु ही कर रही थी तो मुझे जुगल जी से कुछ बातें करने मौका मिल गया , जो हमेशा की तरह मेरे लिये एक खास अनुभव था.रंगमंच जीवन के यथार्थ से जुडा माध्यम है , जबकि सिनेमा को लार्जर दैन लाइफ़ कहा जाता है .दोनो ही माध्यमों में सबसे बडा फ़र्क है पहुँच का. जुगल जी ने बातचीत के दौरान कहा भी कि इस वक्त मैं आपसे यहाँ बैठा बातें कर रहा हूँ और दुनिया भर में जाने कितने लोग इसी वक्त मुझे सिनेमा के पर्दे पर देख रहे होंगे.नाटक में हमें रोज़ अपनी जगह ,अपने किरदार में मौजूद होना पडता है जबकि फ़िल्म एक बार बन जाये तो वो कालजयी हो जाती है. फिर उस कहानी में वो किरदार और किरदार के माध्यम से कलाकार हमेशा ज़िन्दा रहता है.और भी ढेरों बातें हुई और ये मुलाकात भी मेरे यादगार लम्हों में शामिल हो गयी.
माटी में बीज सा ख़ुद को बोना, बरखा सा ख़ुद ही बरसना, फिर उगना ख़ुद ही जंगली फूल सा. कांटना-छांटना-तराशना-गढ़ना ख़ुद को आसान नहीं होता. सिद्धि प्राप्त करनी होती है ख़ुद तक पहुँचने के लिए. धार के विपरीत बहना पड़ता है थकान से भरी देह उठाये तय करना पड़ता है रास्ता बिलकुल अकेले. दूसरों पर जय पाने से पहले ख़ुद को जय करना (जीतना) होता है...तब बनता है कोई "स्वयंसिद्ध" !!
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2 टिप्पणियां:
मुलाक़ात में की गई बात तफशील से दो. तुमने क्या सवाल किए, उनके क्या जवाब थे. एक पूरी बातचीत या साक्षात्कार की शकल में. तब हम उस व्यक्तित्व के बारे में जान पाते हैं. अभी तो लगता है, बस भावार्थ है. बुरा मत मानना. यह मेरा सुझाव है.
प्रिय विभा दी , अपनों की अच्छी सलाह और नेक सीख का बुरा मान जाऊँ , मैं इतनी भी बुरी नही..., दरअसल आपने जो कहा मैं भी वैसा ही सोच रही थी ,बल्कि हमेशा ही सोचती हूँ लेकिन बुरा हो आलस्यदेव का, जो ऐसा होने नही देते.फिर कुछ काम की व्यस्तता का और कुछ नेट महोदय के जब-तब रूठ जाने का रोना तो अपनी जगह हैं ही. बहरहाल आपके सुझाव पर अमल करने की कोशिश करूँगी और इस साक्षात्कार को भी पूरा लिखने की कोशिश करती हूँ,जल्दी ही !
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