नही... ,नही..., आप धोखे में बिल्कुल मत आइयेगा . ये शेक्सपियर के मर्चेंट आफ़ दी वेनिस की झलक नही , हमारे शहर की एक व्यस्ततम सडक का नज़ारा है. अब कि सावन हमारे शहर में ज़रा झूम के आया और भादो ने भी कारे-कजरारे मेघों की अगवानी में बाहें पसार दी तो फिर क्या..., जित देखो, उत जल ही जल...! आनंद तो खूब आया लेकिन बकौल जनाब जावेद अख्तर साहेब - दुनिया में हर शै की कीमत होती है तो हमने भी आनंद की कीमत चुकायी, जगह-जगह जल-जमाव झेल कर ! अब इन बेचारों की हालत पर गौर कीजिये - बिना कश्मीर गये डल झील के बीच बैठे हैं ग्राहकों के इंतज़ार में , ग्राहक कोई नाव मिले, तब तो पार करें ये वैतरणी...! वेनिस या डल झील में तो लोगों को ये सुविधा मिलती ही है न , फिर हमें क्यों नही....., किससे कहें ? लगता है अब आसमान से ही पानी के साथ ही नाव या लाइफ़ बोट बरसे , तब कहीं जा कर इस मुसीबत से राहत हो ..., आपका क्या ख्याल है ?
माटी में बीज सा ख़ुद को बोना, बरखा सा ख़ुद ही बरसना, फिर उगना ख़ुद ही जंगली फूल सा. कांटना-छांटना-तराशना-गढ़ना ख़ुद को आसान नहीं होता. सिद्धि प्राप्त करनी होती है ख़ुद तक पहुँचने के लिए. धार के विपरीत बहना पड़ता है थकान से भरी देह उठाये तय करना पड़ता है रास्ता बिलकुल अकेले. दूसरों पर जय पाने से पहले ख़ुद को जय करना (जीतना) होता है...तब बनता है कोई "स्वयंसिद्ध" !!
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4 टिप्पणियां:
जो आपका ख्याल है वही हमारा भी। शुभकामनायें
apne shahar ki to baat hi nirali hai tabhi to prabhu ki vishesh anukampa ke patr hain hum.hum banarsi musibaton se kahan ghabrate hain.is baat ko hukmraan bhi jante hain .mahadev se hamara sidha sampark hai.asambhav nahi ki voh navon ka bhi intzaam kar dain.
यू आर राइट सरिता जी, महादेव पर इसी विश्वास से ही तो ज़िन्दा हैं हम बनारसी !
सही मे ये मर्चेंट ओफ वेनिस लग रहे हैं लेकिन नाव कहाँ है ?
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