नाट्य लेखिका, सशक्त अभिनेत्री और रंगकर्म
के माध्यम से पूरे देश में एक अलग ही तरह की क्रांति लाने वाली सामाजिक कार्यकर्ता विभा रानी को कौन नहीं
जानता ? विभा जी ने मैथिली
भाषा के तीन साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेताओं हरिमोहन झा, प्रभास कुमार चौधरी और लिली रे की छह किताबों का मैथिली से हिंदी में अनुवाद किया है। साथ ही हिंदी रंगमंच को 'मैं कृष्णा कृष्ण की', 'एक नई मेनका', 'भिखारिन' के अलावा 'आओ
तनिक प्रेम करें', 'दूसरा
आदमी-दूसरी औरत', 'अगले
जन्म मोहे
बिटिया न कीजो' और
'प्रेग्नेंट
फादर' जैसे
मौलिक पुरस्कृत नाटक देकर एक कीर्तिमान स्थापित किया है.
विभा दीदी को जितना मैं जानती हूँ, उनके काम और समग्र
व्यक्तित्व पर पूरी की पूरी एक किताब लिखी जा सकती है लेकिन उनके जिस एक अभियान ने
मुझे मन मस्तिष्क से लेकर आत्मा की गहराइयों तक प्रेरित किया था, वह था विभिन्न जेलों
में कैदियों के बीच जाकर रंगकर्म
के माध्यम से उनका मानसिक पुनर्वास करना, उन्हें अवसाद और
प्रायश्चित से भरी गहरी पीड़ा से मुक्ति दिलाने का प्रयास करना. एक महिला रंगकर्मी
होने के नाते यह निश्चित रूप से आसान नहीं था लेकिन विभा दी आसान कामों को हाथ में
लेती ही नहीं. वह स्वभाव से ही चुनौती पसंद हैं. ब्रेस्ट कैंसर जैसे
भयानक राक्षस से लड़ने और इस मारक लड़ाई में जीतने वाली हमारी यह जीवट योद्धा
कोरोनावायरस के चलते लागू हुए 'क्वॉरेंटाइन' समय में भी अपनी
रचनात्मकता के माध्यम से लोगों में प्रेरणा का प्रसार करने में लगी हैं.
वर्षो
पूर्व ही फिल्म 'धधक' और टेली फिल्म 'चिट्ठी' में पर्दे पर अभिनय
क्षमता का लोहा मनवाने वाली विभा रानी ने वर्ष 2019 में रिलीज़ हुई सैफ़ अली खान स्टारर फ़िल्म 'लाल कप्तान' में सबसे ज्यादा चर्चित
होने वाला किरदार अदा किया या यूँ कहें कि उनकी अभिनय से ही वो किरदार इतना चर्चित
हो गया.
फ़िलहाल
उनका यूट्यूब चैनल "बोले विभा" बहुत चर्चित हो रहा है
जिसमें वह नित नए विषय के साथ दर्शकों से रूबरू होती हैं उनमें जीवन के प्रति
राग-अनुराग और प्यार भरती हैं. आशा और नए सपनों की किरण जगाती हैं.
अनेकानेक नाटक लिखने वाली, अनेकानेक किरदार जीने
वाली और एकल महिला नाटकों को सबसे ज्यादा प्रसारित करने वाली देश की वरिष्ठ
रंगकर्मी विभा रानी के सबसे बेहतरीन योगदानों में से एक है - "एक बेहतर विश्व - कल
के लिए - अवितोको रूम थिएटर" अभियान, जिसके अंतर्गत
उन्होंने रूम थिएटर की परिकल्पना को एक नया आयाम दिया है. नाटक करने वालों के
स्वप्न को नया पंख, नया
आकाश दिया है. नाटक कहीं भी हो सकता है. सीमित से सीमित संसाधन में 'अभिनय' के साथ रंगकर्म किया
जा सकता है. अगर दर्शक नाटक तक ना पहुंचें तो नाटकों को दर्शक तक पहुंचाया जा सकता
है. इस असंभव को संभव बनाने में विभा रानी का बहुत बड़ा योगदान है. मायानगरी मुंबई
में आज रूम थिएटर और छोटे कक्षों में किए जाने वाले तमाम रचनात्मक कार्यक्रमों का
जो सिलसिला चल रहा है, उसकी
शुरुआत करने का श्रेय विभा रानी को जाता है , यह कहना अतिशयोक्ति
नहीं होगी.
विगत चार दशकों से निरंतर रंगकर्म और
लेखन में संलग्न और
पिछले साल ही कार्यालयीय सेवा से निवृत हो कर पूर्ण रूप से रचनाकर्म को समर्पित हो
जाने वाली विभा रानी अभी संतुष्ट नहीं हुई हैं. उनका मानना है कि
मंज़िल अभी दूर है. उनके ही शब्दों में "महिला रंगमंच पर अभी भी बहुत काम करना
बाकी है. हर भाषा, हर
समाज में अभी भी ऐसे लोग हैं जो रंगमंच को सही नहीं मानते. सम्माननीय नहीं मानते
इसलिए उन जगहों पर अपने घर की बहू बेटियों, बीवियों का काम करना
पसंद नहीं करते. महिला नाट्य लेखन हो रहा है लेकिन मुख्य रूप से उन्हीं के द्वारा
जो नाटक से जुड़े हुए हैं. आज भी नाट्य लेखन को साहित्य का अंक हिंदी में कम से कम
नहीं माना जा रहा है. इस कारण भी महिलाएं नाट्य लेखन में कम उत्सुक होती हैं नाटक
लिखने के बजाय वह उपन्यास लिखना पसंद करती हैं क्योंकि इसकी मांग अधिक है."
उम्मीद पर दुनिया कायम है और प्रयासों से
ही नए निर्माण होते आये हैं. इस दृष्टि से प्रख्यात 'महिला' रंगकर्मी के रूप में
विभा रानी जी का यह सतत प्रयास रंगकर्म में रत असंख्य महिला कर्मियों के लिए दिशा
निर्देशक की भूमिका निभाएगा, इसमें कोई संदेह नहीं.
प्रस्तुति
- प्रतिमा सिन्हा (लेखिका)
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