गुरुवार, 26 मार्च 2020

"पढ़ी-लिखी जागरूक स्त्री ही सशक्त है।" - ममता कालिया

अपने उपन्यास 'दुक्खम सुक्खम' के लिए प्रतिष्ठित 'व्यास सम्मान' से अलंकृत सुविख्यात, सुप्रतिष्ठित कथाकार एवं मेरी प्रिय रचनाकार आदरणीया श्रीमती ममता कालिया जी का लेखन संसार बेहद विशाल है.
कुछ-कुछ अनंत आकाश सा.....



मैं और मेरे जैसी जाने कितनी ही महिला रचनाकारों ने उनको अपना आदर्श माना होगा, यह वो ख़ुद भी नहीं जानती होंगी. अपने जीवन की पहली लम्बी कहानी जो मैंने पढ़ी थी वो उनकी ही लिखी हुई थी. एक पूरा युग बिता कर पिछले साल दिसम्बर में उनसे मुलाक़ात हुई. उन्हें बिलकुल वैसा ही पाया जैसा सोचा था. ममतामयी, अपनत्व से भरी हुई. जब उनसे संकोच के साथ "स्वयंसिद्धा" हेतु उनके कुछ शब्द माँगे तो उन्होंने तुरन्त मेरे संकोच का मान रखते हुए अपनी सहमति दे दी.  
'स्वयंसिद्धा' ने उनसे तीन बातें जाननी चाही थीं.
*आपके विचार से सशक्त नारी कौन है
*आप स्वयं अपने आप पर किस एक बात के लिए गौरव महसूस करती हैं
*आपके जीवन का कोई एक ऐसा क्षण जब आपने अपने  या किसी दूसरे के हित के लिएसचमुच शक्ति प्रयोग किया हो।

पढ़िए कि मेरी प्रिय रचनाकार ने बिना किसी बनावट और लागलपेट के क्या कहा....... 



"कितनी अच्छी बात है कि इक्कीसवीं सदी में स्त्री को अपनी शक्ति दिखाने के लिए तीर कमान लेकर नहीं निकलना पड़ता।  बिना इतिहास में जाये, यह कहना पर्याप्त होगा कि आज पढ़ी-लिखी जागरूक स्त्री ही सशक्त है। सबसे ज़रूरी है कि वह अपने को शिक्षित करे। उसके बाद अपने किसी रोजगार से लगे। दूसरी बात, वह अपनी निर्णय क्षमता का विकास करे। कोशिश करे कि कार्यक्षेत्र में किसी हिंसा की चपेट में ना आए। इसका अर्थ यह कतई नहीं कि वह स्वयं शोषक की भूमिका में आ जाए। उसके अंदर स्त्रियोचित सौम्यता, सरलता और लचीलापन भी बना रहे अन्यथा परिवार नष्ट हो जाएगा।
"गर्व नहीं संतोष कर सकती हूँ कि अनेक मुसीबतों, बेवकूफियों और बेइज्जतियों से अपने घर परिवार को बचाकर एक रचनात्मक जीवन जिया। बच्चों का कैरियर बन गया।रवींद्र भी मनचाहा लिख पाए,मनमाना जी पाए। मैंने भी किसी भी हाल में लिखना नहीं छोड़ा। परिवार को दीनता और पलायन, हीनता और पराजय से बचा सकी, इसका ही संतोष या गर्व समझ लो।" 
*
"छोटे-छोटे युद्ध लड़े और जीते। कॉलेज को कच्चे से पक्का कराने का संघर्ष 17 साल चला। एक लद्धड़ संस्था को पटरी पर लाने में जीवन की आधी ताकत खर्च हुई। संतोष यह कि जीत हासिल हुई। अपना लेखन तो किया ही बहुत सी लड़कियों को साहित्य में रुचि देने का काम किया। रवि के दिवंगत होने के बाद अकेले रहने का पराक्रम तो चल ही रहा है अभी। यहाँ बसने के साथ रचने का भी सुख है।"

- ममता कालिया

कोई टिप्पणी नहीं:

अवसाद के भय से जूझता मध्यमवर्ग !

शायद आपको पता हो कि भारतीय समाज में पाया जाता है एक 'मध्यमवर्गीय तबका'। उच्च वर्ग की तरह  कई पीढ़ियों के जीवनयापन की चिंताओं से मुक...