गुरुवार, 4 नवंबर 2010

दीये की आदत...

दीये की कुछ आदत ही ऐसी है कि वो खुशियाँ अकेले नहीं मनाता..., जलता है तो उजियार का उपहार सबको बाँटता ज़रूर है. कम हो या ज़्यादा... प्रकाशित होने का सुख सबसे साझा करता है. एक हो या अनेक, दीये की उपस्थिति को नकारना संभव नहीं, क्योंकि दीया अपने होने को किसी से छिपा कर नहीं रखता, न ही अपने आलोक का धन अपनी ही मुठ्ठी में दबा कर रखता है. इसीलिये तो सूर्य की निर्विवाद और निरंतर उपस्थिति के बावजूद दीये की महत्ता आज भी अपनी जगह अटल स्थापित है.
इसी नन्हे, क्षणभंगुर, नश्वर, परन्तु एक सतत, शाश्वत, अनश्वर प्रकाश को अपने भीतर समाए, हमें हर तिमिर से लडने की शक्ति और विश्वास देते  दीये के प्रति आभार प्रकट करने का पर्व है दीपावली. आकाश में सूरज-चाँद-सितारों और ज़मीन पर बनावटी-नकली रोशनी बिखेरती बिजली की लडियों के बावजूद अपनी सादगी, सौम्यता और सात्विकता से सत से असत एवं तम से ज्योति की ओर जाने का संदेश देते दीये से कुछ सीखने का पर्व है दीपावली.
मेरे सभी अपनों को इस शुभ प्रकाश पर्व की असीम शुभ कामनाएं !!!


शुभ दीपावली

2 टिप्‍पणियां:

Deepak chaubey ने कहा…

दीपावली के इस पावन पर्व पर आप सभी को सहृदय ढेर सारी शुभकामनाएं

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

आप ने बिलकुल ठीक कहा है....वास्तव में निस्वार्थ सेवा और निरंतर अपना कर्म करते रहने की भावना उस छोटे से दीपक में है जो हम दीपावली पर प्रज्वलित करते हैं.हम सब का मन अच्छी भावनाओं से जगमगाता रहे तभी इस पर्व की सार्थकता है.

आपको,आप के मित्रों व सभी परिवारीजनों को दीप पर्व की शुभ कामनाएं.
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