आने वाले मंगलवार को 'हम भारत के लोग' अपने महान गणतंत्र की साठवीं सालगिरह मनाने जा रहे हैं । साठ वर्ष पहले छब्बीस जनवरी को हमने अपना संविधान आत्मार्पित किया था । वो संविधान , जो हमें पूर्ण स्वतंत्रता , समानता , न्याय और सम्मान के साथ एक प्रतिष्ठित और गरिमामय नागरिक के रूप में स्वयं को स्थापित करने का अवसर और वातावरण प्रदान करता है । वो संविधान , जो भारत जैसे विशाल देश को एक विधान - सूत्र में पिरोते हुए , एक छोर से दूसरे छोर तक अखंड , अविभाज्य और अतुल्य बनता है । बचपन से ही गणतंत्र दिवस को लेकर मन - मस्तिष्क में एक अनोखा उत्साह रहता आया है । सुबह से ही उमंग की लहरें पूरे तन -मन को उद्वेलित करती रहती हैं । दूरदर्शन के राष्ट्रीय चैनल पर राजपथ दिल्ली की भव्य परेड का सजीव प्रसारण , लाल किले पर शान से फहराता हमारी जान तिरंगा और विश्व भर के समक्ष अपने अदम्य शौर्य और पराक्रम का जयघोष करती भारतीय सेना ... ।जोश का समंदर अपने पूरे उफान पर रहता है । एक नहीं , हजारो , लाखो , करोड़ों बार ऊपर वाले को धन्यवाद देती हूँ कि उसने मुझे इस पुण्य धरा की माटी में जन्म लेने का अवसर दिया और ये कोई कविता या शेर ओ शायरी की भाषा नहीं सच्चे मन की अभिव्यक्ति है । मुझे अपने देश से बेइंतहा प्यार है । मैं इसके खिलाफ कुछ कहना तो दूर , कुछ सुन भी नहीं सकती । मैं इसकी रूह से मोहब्बत करती हूँ और अगर पुनर्जन्म की परिकल्पना सही है तो बार - बार इसी भूमि पर जनमना चाहती हूँ ।
बावजूद इसके , इस दफ़ा मन जाने क्यों कुछ उदास सा हो रहा है । बचपन से ही इस दिन की पहचान रही मन की वो उमंग जाने कहाँ ग़ुम सी गयी लगती है । जाने क्यों लगता है जैसे बीतते सालो में सारा कुछ महज औपचारिकता बन कर रह गया है।२६ जनवरी का मतलब अब है , एक और छुट्टी , आराम का - मस्ती का दिन ।
छोटे -छोटे बच्चे ,जो भारत के भावी नागरिक हैं , कर्णधार हैं , उनके लिए भी गणतंत्र दिवस केलेंडर में छपी एक तारीख से ज्यादा कुछ नहीं , जब उनके सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं और मिठाईयां बंटती हैं ।
विश्व के महानतम गणतंत्र के ६१ वें वर्ष में प्रवेश करने के साथ ही हमें इस पहलू पर भी गंभीरता से सोचना होगा कि कैसे इस महान गणतंत्र की संवैधानिक गरिमा की अमूल्य विरासत भावी पीढ़ी के कर्णधारों के हाथों तक पहुंचाई जाये , कि वे इसे धारण करने के योग्य बन सकें ।
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