हां , ये कहना ही पड़ेगा , कहना ही चाहिए । नया ही तो है सब कुछ । नया साल जो है । मगर सच कहू , मेरे इस कहने के पीछे एक खलिश भी है । जो बहुत पहले करना चाहिए था वो करने में थोड़ी देर हो गयी । नए साल की शुरुआत होने से पहले ही इतनी उथल -पुथल मच गयी कि फिर कुछ करने का न वक्त मिला , न मौका । नहीं - नहीं , कुछ ख़ास नहीं , अरे बाबा , मै किसी राजनैतिक या प्राकृतिक उथल - पुथल की बात नहीं कर रही हूँ ( हैती में भूकंप तो बाद में आया ) , मै तो उस उथल -पुथल की बात कर रही हूँ जो मेरे इर्द - गिर्द मची । कार्यालय का स्थान परिवर्तन हुया , सारा ऑफिस चंद कार्टून्स में पैक हो गया । फिर नए सिरे से 'दुकान' जमाने की चिंता । गए साल का आखरी और नए साल का पहला हफ्ता इन्ही सब पर कुर्बान हो गया। उसके बाद जब फिर से बैठने की नौबत आयी तो वो सारे काम एक -एक कर याद आने लगे जो इस आपाधापी में छूट गए थे और यकीन मानिये सबसे पहले जो ज़ेहन में आया वो था 'मेरा आकाश '। उन्नीस से उन्नीस , आज पूरा एक महीना हो गया । पिछली उन्नीस को पा देखी थी और कुछ लिखा था । इस एक महीने में बहुत कुछ हुआ , बस लिखने का संजोग नहीं बना । नए साल से रोज़ नियमित ब्लॉग लिखूगी , इस संकल्प की भी ऐसी की तैसी हो गयी। खैर चलिए , जब शुरू हो जाये , वही शुरुआत है । उम्मीद करती हूँ कि जब शुरुआत हो ही गयी है तो आगे भी सब अच्छा ही
होगा ।
मेरे सब अपनों को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये !
प्रतिमा .......................
माटी में बीज सा ख़ुद को बोना, बरखा सा ख़ुद ही बरसना, फिर उगना ख़ुद ही जंगली फूल सा. कांटना-छांटना-तराशना-गढ़ना ख़ुद को आसान नहीं होता. सिद्धि प्राप्त करनी होती है ख़ुद तक पहुँचने के लिए. धार के विपरीत बहना पड़ता है थकान से भरी देह उठाये तय करना पड़ता है रास्ता बिलकुल अकेले. दूसरों पर जय पाने से पहले ख़ुद को जय करना (जीतना) होता है...तब बनता है कोई "स्वयंसिद्ध" !!
मंगलवार, 19 जनवरी 2010
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3 टिप्पणियां:
dhanya baad
चलिये दीदी अब नियमित लिखियेगा……नववर्ष की शु्भकामनायें ।
आपको भी नव वर्ष और बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ .......
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