जाने क्यों आज रोने को जी चाह रहा है ,
जाने क्यों भरी चली जा रहीं हैं पलकें,सुधियों की भीड़ से ,
जाने क्यों हर बात आज जैसे छू रही है मन ,
क्या है जो....
घुमड़ रहा है भीतर,
क्या है जो....
छूट रहा है बाहर ,
न जाने किसकी अनुपस्थिति ने पोंछ डाले हैं
आसमान के सारे चटकीले रंग,
ये किसके न होने से
सादी - वीरान सी हो गयी है हर दिशा,
ये किसका चेहरा बन कर धुंआ
छाया चला जा रहा है आँखों के आगे......?
ये कौन है
जिसका न होना............
बाकी हर किसी के होने पर भारी पड़ गया है...?
15 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर सृजन , बधाई.
कृपया मेरे ब्लॉग "meri kavitayen"पर भी पधारने का कष्ट करें, आभारी होऊंगा.
उस कौन को जानने की उत्कंठा .... अच्छी प्रस्तुति
एस. एन. शुक्ला जी ... हृदय से आभार उत्साहवर्धन के लिए...
संगीता जी ...उसी कौन की तलाश ही तो ज़िंदगी बन चुकी है...वैसे आपकी प्रतिक्रिया पाना एक बेहद सुखद अनुभव है...यूं ही स्नेह बनाये रखियेगा...!
Anayaas hi hota hai koi Jo udaasi faila jaata hai aur sabke hone ka ehsaas Bhi feeka ho jaata hai ...
ये कौन है
जिसका न होना............
बाकी हर किसी के होने पर भारी पड़ गया है...?
यकीनन कोई तो होगा
सुन्दर रचना
जिसका न होना............
बाकी हर किसी के होने पर भारी पड़ गया है...? behad bhawpoorn.
aap sabhi mitron ka hriday se shukriya...
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 30-08 -2012 को यहाँ भी है
.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....देख रहा था व्यग्र प्रवाह .
hridaysparshi abhivyakti ....hai Pratibha ji...
shubhkamnayen ...!!
maaf kiijiyegaa Pratima ji ,aapki pratibha itanii achchhi lagi ki naam galati se Pratibha likh diya ..
खूबसूरत रचना
बहुत ही बढ़िया
सादर
bahut kuch kahti hai aapki rachna .........sundar bhav
आह.......
ये कौन है
जिसका न होना............
बाकी हर किसी के होने पर भारी पड़ गया है.
कविता को ऐसे ही समाप्त करना चाहिए कि या तो आह निकले मुह से या वाह
बधाई हो प्रतिमा जी !
एक टिप्पणी भेजें