माटी में बीज सा ख़ुद को बोना, बरखा सा ख़ुद ही बरसना, फिर उगना ख़ुद ही जंगली फूल सा. कांटना-छांटना-तराशना-गढ़ना ख़ुद को आसान नहीं होता. सिद्धि प्राप्त करनी होती है ख़ुद तक पहुँचने के लिए. धार के विपरीत बहना पड़ता है थकान से भरी देह उठाये तय करना पड़ता है रास्ता बिलकुल अकेले. दूसरों पर जय पाने से पहले ख़ुद को जय करना (जीतना) होता है...तब बनता है कोई "स्वयंसिद्ध" !!
मंगलवार, 6 जुलाई 2010
बस यूं ही .........
हाँ , बस यूं ही क्योंकि कभी - कभी कुछ बस यूं ही भी करना चाहिए । एक पुराना दर्द फिर उभरा हुआ है । नेट महोदय ने फिर हाथ खड़े कर दिए हैं पिछले लगभग एक सप्ताह से । वजह मत पूछिए । शायर का शेर याद आ गया - '' मुझसे मत पूछ मेरे दिल की कहानी हमदम , इसमें कुछ पर्दानशीनों के भी नाम आते हैं । '' अब पूरी तरह से ये मेरे हालात पर फिट नहीं बैठता , मगर मैंने पहले ही कहा न आज बस यूं ही । क्रोध तो बहुत आ रहा है , मगर ------
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2 टिप्पणियां:
koi baat nahi shayad net mahoday apke dhairya ki pariksha le rahe hai. isliy dhairya rakhiye aur net thik hone per poore josh o kharosh ke saath hamse rubaroo hoiye hum intajaar kar rahe hai
yun bhi hua hai baithe bithaye kabhi - kabhi .........
bas chal pada hu jaise koi le chala mujhe ......!
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