मंगलवार, 6 जुलाई 2010

बस यूं ही .........

हाँ , बस यूं ही क्योंकि कभी - कभी कुछ बस यूं ही भी करना चाहिए । एक पुराना दर्द फिर उभरा हुआ है । नेट महोदय ने फिर हाथ खड़े कर दिए हैं पिछले लगभग एक सप्ताह से । वजह मत पूछिए । शायर का शेर याद आ गया - '' मुझसे मत पूछ मेरे दिल की कहानी हमदम , इसमें कुछ पर्दानशीनों के भी नाम आते हैं । '' अब पूरी तरह से ये मेरे हालात पर फिट नहीं बैठता , मगर मैंने पहले ही कहा न आज बस यूं ही । क्रोध तो बहुत आ रहा है , मगर ------

2 टिप्‍पणियां:

Kalpana ने कहा…

koi baat nahi shayad net mahoday apke dhairya ki pariksha le rahe hai. isliy dhairya rakhiye aur net thik hone per poore josh o kharosh ke saath hamse rubaroo hoiye hum intajaar kar rahe hai

Nalin ने कहा…

yun bhi hua hai baithe bithaye kabhi - kabhi .........
bas chal pada hu jaise koi le chala mujhe ......!

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