मंगलवार, 12 मई 2020

बदल जायेगा बहुत कुछ !


जाने-माने पत्रकार और फ़िल्म समीक्षक श्री Ajay Brahmatmaj जी ने अपने यू ट्यूब चैनल 'सिने-माहौल' में वर्तमान परिस्थितियों पर चर्चा करते हुए एक बहुत अहम प्रश्न उठाया गया है।
'क्या किस्सों तक ही रह जाएंगे सिनेमाघर ?'
कला, संस्कृति, रंगमंच तथा फिल्मों से जुड़े हुए लोगों के लिए यह प्रश्न दरअसल सिर्फ प्रश्न नहीं आगत भविष्य की आहट भी है। इस प्रश्न में भविष्य के प्रति डर है तो उस डर का सामना करने की तैयारियों का बिगुल भी है। जैसा कि अजय सर ने इस वीडियो में कहा भी है, रंगमंच और सिनेमा अगर एक सामूहिक कला है तो अब तक इसका आनंद लेना भी एक सामूहिक क्रिया ही थी। एक साथ हॉल में फिल्म देखने का जो मज़ा हुआ करता था उसका कोई जोड़ नहीं हो सकता लेकिन अब 'समय' हमें उस आनन्द से कुछ दिनों तक वंचित रखने वाला है। कोरोनावायरस संकट के बादलों से घिरे हुए समय में लॉकडाउन खत्म होने के बाद हमारी जीवनचर्या अब लम्बे समय तक नॉर्मल होने वाली नहीं है। बदलेगा, बहुत कुछ बदलेगा। हम चाहें या न चाहें। हम बदलाव को अपनाने में चाहे कितनी भी देर लगाएं लेकिन यह बदलाव हमारे जीवन का अनिवार्य और अस्थाई अंग बनेगा ही बनेगा।
जीवन और इसकी परिस्थितियों का मार्च 2020 से पहले के स्वरूप में लौट पाना थोड़ा मुश्किल है और यह ज़रूरी भी है।
जैसा कि जानकार लोग कह रहे हैं कि कोरोनावायरस कोई पहला और आखिरी वायरस नहीं है जिससे लड़ने के लिए हमें एक बहुत बड़ी रणनीति बनाने की आवश्यकता पड़ रही है। दरअसल पिछले कई दशकों से हमने जिस तरह से प्रकृति का दोहन किया उसके परिणाम स्वरूप अभी बहुत सारे प्राकृतिक विषाणु हमसे प्रतिशोध लेने के लिए आने वाले हैं। विशेषरूप से यह वायरस अगर सच में, जैसा कि संदेह किया जा रहा है, मानव निर्मित है तो यह 'सच' भविष्य में और बड़े खतरे का संकेत मात्र है।
अर्थव्यवस्था और सामरिक शक्ति के क्षेत्र में सबसे ताकतवर होने की भूख मानव से अभी और अनिष्ट करवाएगी। ऐसे में हमारे पास अपनी जीवनचर्या को बदलने और अपने आसपास अपना निजी सुरक्षा चक्र स्वयं निर्मित करने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं होगा और इस प्रक्रिया के अंतर्गत जो चीज सबसे पहले छोड़ी जाएगी, वह है अनजान और अनावश्यक भीड़ में हमारा मौजूद होना।

मेलों, बाजारों, नाटक और सिनेमा देखने के लिए थियेटरों, यात्राओं के दौरान स्टेशनों और हवाई अड्डों में जब भी हम रहे, कभी यह ध्यान नहीं दिया कि हमारे आसपास कौन है ? कौन बैठा है ? कौन हमसे स्पर्श हो रहा है ? हम किसे स्पर्श कर रहे हैं ? हमसे कितनी दूर बैठकर कौन खांस रहा है ? किस को बुखार है ? बल्कि कोई बीमार दिखा तो उसकी मदद करने में तत्पर होना अपना कर्तव्य लगा। मगर अब यह सब बदल जाएगा। हम बदल जाएंगे। कब तक के लिए पता नहीं लेकिन फ़िलहाल तो ज़रूर और यहीं शायद हमारे हक़ में भी होगा। दूसरों की मदद के काबिल भी हम तभी हो पाएंगे जब हम खुद मजबूत और सेहतमंद होंगे। हमें अपना इम्यून सिस्टम मज़बूत करना होगा और उन सारे हालात से जितना हो सके दूर रहना होगा जो हमें किसी भी तरह के संक्रमण से ग्रस्त कर सकें।
यात्राएं कुछ हद तक बची रहेंगी लेकिन बाज़ार, सांस्कृतिक आयोजनों, मेलों और थियेटरों की रौनक कम हो जाएगी। अरबों-खरबों रुपए कमा कर देश की अर्थव्यवस्था में योगदान करने वाली हमारी फिल्में अब एक नए समय का सामना करने के लिए तैयार होंगी जहाँ पर उन्हें दर्शकों को पहले से ध्यान में रखना होगा। सिनेमाघरों और मल्टीप्लेक्स पर टूट पड़ने वाली भीड़ कुछ समय तक गायब रहेगी और इसका पूरा असर नाटकों पर भी पड़ने की संभावना है। थिएटर में दर्शकों का आना संशय में है। ऐसे में नई संभावनाएं तलाशना हमारे लिए चुनौती, आवश्यकता और मजबूरी तीनों एक साथ बन गया है।
फ़िलहाल डिजिटल प्लेटफॉर्म पर बढ़ी सक्रियता ने हमें संतोष दिलाया है कि सब कुछ ख़त्म नहीं होगा सिर्फ अपना तरीक़ा बदलेगा लेकिन यह भी सच है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म की भी अपनी सीमाएं हैं। उनमें से कुछ प्रस्तुतियों से जुडी हुई हैं और कुछ का संबंध इंटरनेट पर लगातार बढ़ रहे दबाव से जन्मी परिस्थितियों से भी है। नेटवर्क पर अचानक जितनी भीड़ लगी है उसके भी अपने कुछ प्रभाव होंगे ही। अभी तो हमें उसके लिए भी तैयार होना है।
हाँ अभी बहुत सारी तैयारियां करनी हैं और उसके लिए बस तीन चीज़ों की आवश्यकता है - धैर्य, आशा और सकारात्मकता।

अजय ब्रह्मात्मज सर के चैनल 'सिने-माहौल' का लिंक यह रहा......

6 टिप्‍पणियां:

Sunil "Dana" ने कहा…

कोरोना काल के बाद सिनम्बक स्वरूप निश्चित बदलेगा ।

अजय कुमार झा ने कहा…

भविष्य की आशंकाओं पर चिंतन करती सार्थक पोस्ट | सच में ही कुछ भी पूर्व जैसा नहीं रह जाएगा न समाज न सिनेमा | फिर सिनेमा तो वैसे भी समाज का प्रतिबिम्ब कहा जाता है | अच्छी पोस्ट

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

अजय के लेख के अनुसार जो भी लिखा सच है । अपनों का साथ मिलना तो मुश्किल है फिर अनजानों केसाथ । अभी हमें आदतें बदलनी होगी।

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

बहुत कुछ बदल गया है, बहुत कुछ बदल जाएगा. हमें भी समय के हिसाब से बदलना ही होगा.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सही आंकलन है ...
बदलाव ज़रूर आएगा ... करोना कई परिवर्तन लाएगा ...
पर इसका सामना करना होगा हर किसी को और सिनेमा व्यवसाय वालों को भी ...

संजय भास्‍कर ने कहा…

भविष्य की चिंतन करती सार्थक पोस्ट

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