शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2012

एक चित्र कहानी....मेरी अपनी.....!!

मुद्दतों बाद मिली थी उससे...
वो भी इस शिद्दत को महसूस कर रहा था शायद....दौड़ पड़ा मेरी ओर  दीवानों  की तरह .....
लम्हा भर को मैं झिझकी....ठिठकी एक पल को....  
लेकिन ये झिझक दीवार बन पाती उसके-मेरे बीच.... इससे पहले ही उसने पकड़ कर मेरा दामन मुझे खींच लिया अपनी ओर....
फिर... खुद में समेट ली....पहले मेरी सारी झिझक....  
फिर भर लिया ...सारा का सारा मुझे .....  
अपने आगोश में ......

फिर देखते ही देखते ....
मैं हो कर रह गई उसी की ....हमेशा की तरह ....  
और अब ...जब मैं वापस लौट आई हूँ उसके पास से....तो भी रह गया है मेरा वजूद....मेरा नाम...वहीँ .....उसके पास.....
कभी न मिटने के लिए ....
और...शायद रह गया है हमारे ''साथ'' .होने का एहसास भी....कभी ख़त्म न होने के लिए......

6 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

Chitrmay kahani ... Jaise tasveeren Bol rahi hain ...

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सुन्दर ... अच्छी लगी चित्रमय कहानी ..

विभूति" ने कहा…

चित्र शब्दों क बयाँ कर रहे है.... या शब्द चित्र को बयाँ कर रहे है.... पर जो भी दिल के सारे एहसास उकेर कर शब्दों में आ गए है......

pratima sinha ने कहा…

दिल से शुक्रिया........दिगंबर जी , संगीता जी एवं सुषमा जी....इतने लम्बे अरसे और अन्तराल के बाद मेरे लौटने पर मेरी हौसला अफज़ाई करने के लिए...मैं सोच रही थी कि अब तक तो सब इस आकाश का पता भी भूल चुके होंगे....लेकिन आपके होने से सबका साथ बने रहने का सुखद एहसास हुआ और मिली अपने आकाश पर परवाज़ भरते रहने की प्रेरणा भी........! बस यूं ही साथ बने रहिये...!

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत सुन्दर चित्र और जानकारी से भरा..सुन्दर प्रस्तुतिकरण...!!!

रश्मि प्रभा... ने कहा…

एक एक शब्द तस्वीरों को मुखर कर रहा

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