मंगलवार, 1 मार्च 2011

सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को मिल जाए तरुवर की छाया...!

ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है, मैं जब से शरण तेरी आया ..... मेरे राम !
 ...और ऐसे अवर्णनीय सुख की अनुभूति को शब्द दे पाना सहज नहीं . सोमवार , २८ फरवरी को शर्मा बंधु  को प्रत्यक्ष सुनना ऐसी ही अनुभूति दे गया . जैसा कि उन्होंने ही बताया कि पिछली दफ़ा वो सन १९७६ में वाराणसी आये थे . २०११ में उनका एक बार फिर काशी आगमन हमारे लिए यादगार रहा . श्री महामृत्युंजय महोत्सव २०११ की तीसरी निशा में लोग रात लगभग बारह बजे तक निःशब्द , एकाग्र ,तल्लीन हो कर सम्मोहित भाव से भजन सुनते रहे .मुन्नी और शीला की दीवानगी के इस दौर में श्रोता को राम नाम रसपान कर आनंदित, आह्लादित ,मुदित और मगन होते देखना एक सुखद  आश्चर्य से कम न था . अमूमन किसी कार्यक्रम से लोग  रात दस , साढ़े दस बजे तक निकलने लगते हैं विशेषकर जब फरवरी की हलकी ठण्ड भरी रात हो ..., लेकिन शर्मा बंधु को सुनने के लिए तमाम लोग रात नौ बजे के करीब हॉल में पहुंचे ताकि उन्हें पूरा सुन सकें .    भजनों की श्रृंखला को विराम देते हुए जैसे ही उन्होंने अपना सर्वप्रिय भजन   " सूरज की गर्मी ...." आरम्भ किया सुनने वाले रामनाम अमृत में आकंठ डूब गए . उद्घोषिका  होने के नाते मुझे भी उनके साथ कुछ आत्मीय पल बिताने का अवसर मिला जो मेरे लिए यादगार है . 

अवसाद के भय से जूझता मध्यमवर्ग !

शायद आपको पता हो कि भारतीय समाज में पाया जाता है एक 'मध्यमवर्गीय तबका'। उच्च वर्ग की तरह  कई पीढ़ियों के जीवनयापन की चिंताओं से मुक...