पता है न...,
होती है
हर ऊँगली की अपनी छाप,
जो रह जाती है उन चीज़ों पर बाद में भी
जिन्हें उन ऊँगलियों ने छुआ हो...,
सोच रही हूँ ,
काश........
ऊँगलियों ही की तरह
नज़रों की भी अपनी कोई छाप होती
तो
कितना अच्छा होता...
तब
जिन रास्तों से कभी गुज़रे थे तुम...,
जिन चीज़ों को कभी देखा था तुमने...,
जिन नज़ारों को कभी तुम्हारी नज़र ने छुआ था...,
उन सब पर
अब भी होता
तुम्हारी नज़र का स्पर्श...,
तुम्हारी नज़र का स्पर्श...,
और फिर
जब भी जी चाहता ,
मैं जाकर उन रास्तों पर
छू लेती,
तुम्हारी नज़रों को दोबारा
अपनी नज़रों से...,
और महसूस कर लेती तुम्हें...
तुम्हारे जाने के बाद भी... !
6 टिप्पणियां:
दिल छू लेने वाली कविता
सादर
बहुत बढ़िया !
एक भावपूर्ण कविता |अच्छी प्रस्तुति
आशा
बहुत खूबसूरत ख़याल ...
बहुत ही खुबसूरत कल्पना...
वाह ...बहुत ही बढि़या ।
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