
माटी में बीज सा ख़ुद को बोना, बरखा सा ख़ुद ही बरसना, फिर उगना ख़ुद ही जंगली फूल सा. कांटना-छांटना-तराशना-गढ़ना ख़ुद को आसान नहीं होता. सिद्धि प्राप्त करनी होती है ख़ुद तक पहुँचने के लिए. धार के विपरीत बहना पड़ता है थकान से भरी देह उठाये तय करना पड़ता है रास्ता बिलकुल अकेले. दूसरों पर जय पाने से पहले ख़ुद को जय करना (जीतना) होता है...तब बनता है कोई "स्वयंसिद्ध" !!
सोमवार, 1 फ़रवरी 2010
ऑळ इज़ वेल ...!

सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
अवसाद के भय से जूझता मध्यमवर्ग !
शायद आपको पता हो कि भारतीय समाज में पाया जाता है एक 'मध्यमवर्गीय तबका'। उच्च वर्ग की तरह कई पीढ़ियों के जीवनयापन की चिंताओं से मुक...
-
मेरे दोस्त याद है न ... , तुमने दिया था मेरी सोच को विस्तार , मेरे भावों को आकार , जगाया था विश्वास स्नेह संबंधों पर , हृदय के अनुबंधों पर ...
-
जाने क्यों आज रोने को जी चाह रहा है , जाने क्यों भरी चली जा रहीं हैं पलकें, सुधियों की भीड़ से , जाने क्यों हर बात आज जैसे छू रही है मन ,...
-
कहते हैं, वक्त गुज़र जाता है, यादें रह जाती हैं. वो रह ही नहीं जातीं , बल्कि मन के एक कोने में हमेशा-हमेशा के लिये अपना घर भी बना लेती हैं.या...
1 टिप्पणी:
जो लोग अति संवेदन शील होते हैं उनके लिये आल इस वेल कभी नही हो सकता इसलिये कि वे दुनिया को अपनी नज़रों से देखते है किसी की दिखाई हुई दुनिया की तर्ह नही इसीलिये वे लोग सच्चे और सही इंसान होते हैं । आप ने यह महसूस किया है यह अच्छी बात है ।
एक टिप्पणी भेजें