सोमवार, 2 अप्रैल 2012

एक पुरानी बात......




जाने क्यों आज रोने को जी चाह रहा है ,
जाने क्यों भरी चली जा रहीं हैं पलकें,सुधियों की भीड़ से ,
जाने क्यों हर बात आज जैसे छू रही है मन ,
क्या है जो....
घुमड़ रहा है भीतर,
क्या है जो....
छूट रहा है बाहर ,
न जाने किसकी अनुपस्थिति ने पोंछ डाले हैं 
आसमान के सारे चटकीले रंग,
ये किसके न होने से 
सादी - वीरान सी हो गयी है हर दिशा,
ये किसका चेहरा बन कर धुंआ
छाया चला जा रहा है आँखों के आगे......? 
ये कौन है 
जिसका न होना............
 बाकी हर किसी के होने पर भारी पड़ गया है...? 


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