शुक्रवार, 9 मार्च 2012

उम्मीद की धूप ... !


कुछ दिनों से सोच रही हूँ ......
फिर कोई नज़्म लिखूं...

और अल्फाज़ की डोर में पिरो कर
 तुम्हारे तसव्वुर  को 
रख दूँ सादे पन्ने के दामन में
कुछ दिनों से सोच रही हूँ ......
उदास रातें कात कर धागे बनाऊँ 
और फिर उन  धागों से
बुन कर  कुछ ख्व़ाब,
सजा दूँ
 तुम्हारे ख़्याल के सुरमई रंगों से...

कुछ दिनों से सोच रही हूँ
कि पुराने स्वेटर सी कुछ यादें ,
मन की तहों से निकालूँ और 
एक बार फिर से उन्हें दिखा दूँ,
तुमसे  मिल पाने की
उम्मीद की धूप ... !!!

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