मुद्दतों बाद मिली थी उससे... |
वो भी इस शिद्दत को महसूस कर रहा था शायद....दौड़ पड़ा मेरी ओर दीवानों की तरह ..... |
लम्हा भर को मैं झिझकी....ठिठकी एक पल को.... |
लेकिन ये झिझक दीवार बन पाती उसके-मेरे बीच.... इससे पहले ही उसने पकड़ कर मेरा दामन मुझे खींच लिया अपनी ओर.... |
फिर... खुद में समेट ली....पहले मेरी सारी झिझक.... |
फिर भर लिया ...सारा का सारा मुझे ..... |
अपने आगोश में ...... |
फिर देखते ही देखते .... |
मैं हो कर रह गई उसी की ....हमेशा की तरह .... |
और अब ...जब मैं वापस लौट आई हूँ उसके पास से....तो भी रह गया है मेरा वजूद....मेरा नाम...वहीँ .....उसके पास..... |
कभी न मिटने के लिए .... |
और...शायद रह गया है हमारे ''साथ'' .होने का एहसास भी....कभी ख़त्म न होने के लिए...... |